For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्राण-समस्या .... (विजय निकोर)

प्राण-समस्या

 

सहारा युगानयुग से

फूलों को बेल का, पाँखुरी को फूल का

पत्तों को टहनी का

अब मुझको .... तुम्हारा

बहुत था

बाहों को साँसो के लिए ....

 

कुछ भी तो नहीं माँगा था

तुमने मुझसे

न मैंने तुमसे .... इस पर भी

स्नेह का अनन्त विस्तार

अभी भी बिछा है बिना तुम्हारे

बारिश की बूँदों में बारिश के बाद

आँगन की सोंधी मिट्टी में

कि जैसे .... तुम आ गए

 

हर खुला-अधखुला दृश्य

स्मृतिओं के ताल से

प्रकृति में उतार आता है

मेरे थरथराते मौन में पला

संतृप्त स्नेह तुम्हारा,

कह दे कोई इसको झुठलावा

पर जानती हूँ, इससे बड़ा

सृष्टि पर कोई सत्य नहीं है

 

तुमने तो कभी कोई वायदा नहीं किया था

तभी तो तुम्हारा

वायदा टूटने का कोई सवाल नहीं था

यही सूक्षम सोच मेरा सहारा बनी

बाँधे रखती है संकल्प-शक्ति

मुझमें .... तुममें जीने की

जब भीतर हर बारिश के थम जाने के बाद

ढूँढती हूँ टपकती हुई शेष ज़िन्दगी

का अर्थ

यंत्रवत .... तुम्हारी तलाश में

 

यही है मेरी प्राण-समस्या !

क्या हुआ !!

 

              ---------

 

                               -- विजय निकोर

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

 

 

 

 

 

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 3, 2014 at 7:55am

आदरणीय सौरभ जी, रचना की सराहना के लिए हृदयतल से आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 3, 2014 at 7:53am

//बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति है आपकी//

 

रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय राजेश मृदु जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 1:57pm

//...क्या अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया है आपने ... भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..कविता पुन: पुन: पढने को बाध्य करती है//

 

रचना के मर्म के संग आत्मसात होने के लिए आभार, आदरणीया वंदना जी।

 

हर खुला-अधखुला दृश्य

स्मृतिओं के ताल से

प्रकृति में उतार आता है   

मेरे थरथराते मौन में पला

संतृप्त स्नेह तुम्हारा,//

ऊपर तीसरी पंक्ति पाँचवीं पंक्ति में लिखित संतृप्त स्नेह को संबोधित करती है (न कि अधखुले दृश्य को), यानि कि

हर खुला-अधखुला दृश्य स्मृतिओं के ताल से प्रकृति में उतार आता है  मेरे थरथराते मौन में पला संतृप्त स्नेह तुम्हारा

 

पुन: रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया वंदना जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

 

 

 

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:37am

//सच! बेहद सुंदर, अंतर की कोमल भावनायें जो जीने का सहारा बनी रहती हैं,//

रचना की कोमल भावनाओं के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:35am

//यही सच्चा प्रेम है न कोई शर्त न वादा...... फिर भी अटूट बंधन मन का और भावनाओं का.......बहुत सुन्दर शब्दों से सजाया आपने रचना को और आपकी भावनाएं पढ़ कर महसूस होती है पाठकों को//

 

पाठक कवि की भावनाओं को महसूस कर सके, इससे बड़ा पुरस्कार क्या हो सकता है किसी भी रचनाकार के लिए ! भावनाओं को महसूस करने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया प्रियंका जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:30am

//हर शब्द से विरह वेदना टपकती सी लग रही है , पाठक भी जिसे भोगने के लिये बाद्य हो जा रहा है । बहुत सुन्दर रचना//

आपके शब्दों से मुझको तलत महमूद जी का गाया हुआ साहिर लुधियानवी जी का एक पुराना गीत याद आ गया है...

"अश्कों में जो पाया है, वह गीतों में दिया है"...

 

लगता है हम बहुतों के संग कुछ ऐसा ही होता है। रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:23am

//क्या कहूँ, कभी कभी कुछ न कहना बहुत कुछ कह देते हैं//

आपने यही कह कर बहुत-कुछ कह दिया, आदरणीया कुंती जी। आपका आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:22am

//इस बार आपने तस्लीम कर लिया कि उनका दर्द भी आपका ही अपना दर्द है  //

 

जी, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी, आपने कह दिया जो मैं न कह सका .... जी, उनका दर्द मेरा दर्द रहा है, और यह वही दर्द जो मेरी कलम से स्वयं को अविरल लिखता चला जाता है। स्नेह बनाए रखें, आदरणीय।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:16am

//अत्यंत गूढ़ भावों को समाहित किये हुए अत्यंत शसक्त रचना//

रचना में निहित भावों के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय डा० मिश्र जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on December 31, 2013 at 8:14am

//बहुत सुन्दर बहुत सुन्दर ..आपकी सभी रचनाएं दिल तक पंहुचती हैं ..प्रकृति का बिम्ब लिए बहुत कुछ कह जाती हैं चुपके से //

 

यह शब्द सुनना किसी भी रचनाकार के लिए पारितोषिक से कम नहीं है।

आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश कुमारी जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service