बह्र : २१२ २१२ २१२
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इश्क जबसे वो करने लगे
रोज़ घंटों सँवरने लगे
गाल पे लाल बत्ती हुई
और लम्हे ठहरने लगे
दिल की सड़कों पे बारिश हुई
जख़्म फिर से उभरने लगे
प्यार आखिर हमें भी हुआ
और हम भी सुधरने लगे
इश्क रब है ये जाना तो हम
प्यार हर शै से करने लगे
कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ
भूत से आप डरने लगे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, सच ही कहा है कि अनुभव का कोई सानी नहीं होता। केवल एक शब्द बदलने से शे’र की शेरियत बढ़ गई। तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ इस सुझाव के लिए। स्नेह हूँ ही लगातार बारंबार बना रहे।
Shyam Narain Verma जी, अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, coontee mukerji जी, MAHIMA SHREE जी, Sonam Saini जी, गिरिराज भंडारी जी, vijay nikore जी, Dr.Prachi Singh जी, रमेश कुमार चौहान जी एवं Dr Ashutosh Mishra जी। शे’र पसंद करने और हौसला अफ़जाई करने के लिए आप सबका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हुँ। स्नेह यूँ ही बना रहे।
इश्क जबसे वो करने लगे
रोज़ घंटों सँवरने लगे.....
कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ
भूत से आप डरने लगे...आदरणीय धर्मेन्द्र जी ..बेहद सादगी से मस्ताने अंदाज में नाना बातें करती हुई शानदार ग़ज़ल ...और इस ग़ज़ल के मुझे बेहद पसंद आये ये शेर ..इनके लिए बिशेष रूप से बधाई ..सादर
आदरणीय धर्मेन्द्रजी, अच्छी मुलायम लेकिन बहुत कुछ साझा करती हुई इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें.
’..लाल बत्ती हुई’ अपनी सहजता के कारण ध्यान खींचती है. वो जल भी सकती थी, ताकि लम्हों के ठहर जाने का मंज़र और अधिक साफ़ हो जाता .. :-))
बहुत गहरे हैं.... . . अश’आर.. ;-)))
इस सुंदर प्रस्तुति पर बधाई
इश्क जबसे वो करने लगे
रोज़ घंटों सँवरने लगे...................बहुत शानदार मतला कहा है
इश्क रब है ये जाना तो हम
प्यार हर शै से करने लगे...................वाह! बहुत सुन्दर शेर
हार्दिक बधाई आ० धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , छोटी बह्र मे लाजवाब गज़ल कही है !! वाह भाई जी बहुत सारी बधाइयाँ ॥
कर्म अच्छे किये हैं तो क्यूँ
भूत से आप डरने लगे -------- खास शे र के लिये खास बधाई कुबूल हो ॥
बहुत खूब आदरणीय सर
दिल की सड़कों पे बारिश हुई
जख़्म फिर से उभरने लगे
इश्क रब है ये जाना तो हम
प्यार हर शै से करने लगे ..बहुत खूब ... बधाई आ. धर्मेन्द्र जी ..सादर
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