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ग़ज़ल - आप नाटक में नया किरदार लेकर आ गये !!

पीड़ितों के बीच से तलवार लेकर आ गये 

आप नाटक में नया किरदार लेकर आ गये |

मैं समझता था हर इक शै है बहुत सस्ती यहाँ

एक दिन बाबा मुझे बाज़ार लेकर आ गये |

माँ के हाथों की बनी स्वेटर थमाई हाथ में

आप बच्चे के लिए संसार लेकर आ गये |

क़त्ल, चोरी, घूसखोरी, खुदखुशी बस, और क्या

फिर वही मनहूस सा अख़बार लेकर आ गये |

दोस्तों से अब नहीं होती हैं बातें राज़ की
चन्द लम्हे बीच में दीवार लेकर आ गये |

-- शीष नैथानी 'लिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

[ मात्रिक विन्यास - 2122 2122 2122 212 ]

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on December 27, 2013 at 12:43am

आपने तो चौंका ही दिया

रवां दवां ग़ज़ल हुई है ,,, कहीं कोई अटकाव नहीं ,,,इस सलासत के क्या कहने
बेहद शानदार मुरस्सा ग़ज़ल .... ऐसे ही कहते रहिये,,, हम पढ़ते रहें ... आमीन 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 10:38pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल है आशीष जी हरेक शेर के लिये दाद कुबूल करें

Comment by नादिर ख़ान on December 26, 2013 at 10:25pm

क़त्ल, चोरी, घूसखोरी, खुदखुशी बस, और क्या

फिर वही मनहूस सा अख़बार लेकर आ गये |

वाह - वाह शीष नैथानी जी, बहुत खूब ...... पूरी गज़ल लाजवाब है ।

Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2013 at 10:22pm

मैं समझता था हर इक शै है बहुत सस्ती यहाँ

एक दिन बाबा मुझे बाज़ार लेकर आ गये |////////जय हो 

क़त्ल, चोरी, घूसखोरी, खुदखुशी बस, और क्या

फिर वही मनहूस सा अख़बार लेकर आ गये |//////वाह वाह क्या कहने भाई 

बहुत सुन्दर  ग़ज़ल , आदरणीय  भाई  जी  हार्दिक बधाई आपको 

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