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(२१२२ १२१२ २२)

एक बीमार की दवा जैसे
तुम मेरे पास हो ख़ुदा जैसे |

साँस-दर-साँस ज़िन्दगी का सफ़र
और तुम आखिरी हवा जैसे |

उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे |

रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे |

आपकी मुस्कुराहटों की कसम
हो गया जन्म दूसरा जैसे |

- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 11, 2013 at 10:36pm

भला लगा कि आप इसशेर पर फिर से काम करेंगे.

वस्तुतः जो कुछ उला बयान कर गया, उसके कहे को सानी का मिसरा संतुष्ट /सपोर्ट नहीं कर रहा है. पता तो लिफ़ाफ़े पर लिखा जाता है. जबकि रूह बदन में रहती है. लिफ़ाफ़े का ख़त सही प्रतीक होता. ऐसा मुझे लगा.

शायद मैं क्लीयर कर पाया.

शुभ-शुभ

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 11, 2013 at 9:25pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी |
लिफाफे वाले शेर में कुछ बदलाव करके पेश करूँगा |  :))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 6:12pm

शिल्प और कहन पर बहुत सुन्दर अभ्यास हुआ है भाई सलिजी. बहुत-बहुत बधाई .. .

लिफ़ाफ़ा और उसके पते वाला शेर वो कुछ नहीं कह पाया जो आप चाह रहे थे. यों बात समझ में आ गयी.. :-))))

मनभर दाद लीजिये

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 5, 2013 at 8:24pm

बहुत-बहुत शुक्रिया भाई राजेश जी  !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 5, 2013 at 8:23pm

तहेदिल से शुक्रिया भाई राम शिरोमणि जी, नीलेश जी, डॉ. आशुतोष जी,  सारथी साहब !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 5, 2013 at 6:02pm

शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by राजेश 'मृदु' on December 5, 2013 at 5:10pm

एक बीमार की दवा जैसे
तुम मेरे पास हो ख़ुदा जैसे |

बहुत अच्‍छी लगी ये प्रस्‍तुति, सादर

Comment by Saarthi Baidyanath on December 5, 2013 at 1:19pm

रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे....इस शेर के लिए मुबारकबाद ....बढ़िया ग़ज़ल कही है !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 9:44am

आशीष जी इस सुंदर ग़ज़ल पर आपको हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 5, 2013 at 7:31am

बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है आप ने .. बधाई 

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