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नवगीत -- सियासती दावत

नूतन वर्ष में
नये -पुराने ,सपने
सियासती दावत में
फिर परसे जायेंगे  .
 
वह मन को भरमायेंगे
अतीत भुलायेंगे
नये कपडे ,पुराने
तन को पहनाएंगे
 
शक्कर में पगे हुये
शब्द शब्द बनावटी
ललना से फिसलकर 
प्रजा लुभायेंगे 
 
विजय कुरसी मिलेगी
अधर ,मुस्कान खिलेगी 
सिर पर नेताओं के 
श्वेत कलगी सजेगी
 
हाँ मन के है कारे
यह उजले पर वाले
फिर सरेआम अपना
पोस्टर लगवायेंगे। 
 
नित नये रंग होंगे
नित नये ढंग होंगे
संसद के कामकाज
दल कितने भंग होंगे ?
 
सपने भी सलोने है
जन जन को ढोने है
देश घर, बूढ़े अंस
भार कितना उठायेगे ।
**********

 - शशि पुरवार

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2013 at 7:49pm

बहुत सुन्दर i

बूढ़े अंस भार कितना उठाएंगे  ?

नए साल का बेहतरीन स्वागत i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2013 at 5:07pm

आदरणीया शशि जी , बहुत सुन्दर नव गीत की रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by vandana on December 22, 2013 at 7:42am
नये कपडे ,पुराने
तन को पहनाएंगे
बहुत सुन्दर आदरणीय शशि जी 
Comment by shashi purwar on December 21, 2013 at 6:27pm

abhaar shijju shakur ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 21, 2013 at 4:09pm

आदरणीया शशिजी अच्छी रचना है बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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