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प्रेमधारा मेरी बाधित है अभी ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122      2122      2122      212

.

आपकी पिछली कही मन में प्रवाहित है अभी

इसलिये तो प्रेमधारा मेरी बाधित है अभी

 .

अब सदा बहती ही रहती है उपेक्षा आँखों से

मै कहाँ हूँ आपके मन में ये साबित है अभी

 .

है बड़ी उलटी समस्या रीतता अब प्रेम पर

गाँव-नगरों में हमारा प्रेम चर्चित है अभी   

 .

सारा विष जो आपने अब तक इकठ्ठा था किया

आपकी बातों में वो सारा समाहित है अभी

 .

हाँ, सलोनी धूप मे है छांव किसकी, है पता

और शासक कौन है, क्यों सोच शासित है अभी 

.

मित्र मेरे, अब सहारा है मुझे चुप्पी का बस     

भागते इस भूत की लंगोट इच्छित है अभी

 

******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:36am

वाह वा आदरणीय आपकी इस ग़ज़ल ने तो दिल खुश कर दिया

जिंदाबाद जिंदाबाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:19pm

आदरणीय संजय भाई , उत्साह वर्धक सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

संजय भाई आपक पुनः शुक्रिया , है , का क्रम मै अभी सुधार ले ता हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:16pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपक हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:15pm

आदरणीया वन्दना जी , गज़ल की सराहना के लिये और उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया ॥

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 4:34pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल... वाह!! 

अंतिम शेर...  सानी में "है" का क्रम बिगड़ गया है... देख लीजियेगा...

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी... सादर बधाई स्वीकारें इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए....

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2013 at 9:38am

नये कवाफ़ी के साथ आपने अच्छा प्रयोग किया है गिरिराज जी। बधाई स्वीकारें इस प्रयास के लिए

Comment by vandana on December 14, 2013 at 7:58am

है बड़ी उलटी समस्या रीतता अब प्रेम पर

गाँव-नगरों में हमारा प्रेम चर्चित है अभी   

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 14, 2013 at 7:54am

आदरणीय सौरभ भाई ,  उत्साह वर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ !!!! मै प्रयत्न शील रहूंगा आपका विश्वास न टूटे  इसके लिये !!!!! पुनः आभार !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2013 at 3:02am

आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी इस ग़ज़ल ने अब स्वयं आपके लिए एक मानक बनाया है. आपका ढंग निखर के आया है. एक ऐसी कोशिश जिसे मैं बार-बार होते देखना चाहूँगा, आदरणीय.
हृदय से बधाई स्वीकारें.
शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 11:29pm

आदरणीय बैद्य नाथ भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!

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