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ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-ऐब खुद में ....

ऐब खुद के ढूंढकर उनसे किनारा कर लिया,
उस जहाँ के वास्ते थोडा सहारा कर लिया.
...

एक पल पर्दा हटा, आँखें खुली बस एक पल,  
क्या ही था वो एक पल, क्या क्या नज़ारा कर लिया.
...

दर्द हद से बढ़ गया, लेनें लगा फिर जान जब,
दर्द हम जीने लगे उसको ही चारा कर लिया.
...

इक तरफ़ तो मौत थी औ इक तरफ़ बेइज्ज़ती,
और हम करतें भी क्या, मरना गवारा कर लिया.
...

वो हमारे दिल को तोड़ें, था हमें मंज़ूर कब,
हमने ही खुद दिल को अपने पारा पारा कर लिया.
...

एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे,
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया.
...

उम्र अपनें साथ लाई हिचकिचाहट का हिज़ाब,
बचपनें में जी में आया तब इशारा कर लिया.
...

खेल हो बच्चों का जैसे, छोड़ दी यूँ सल्तनत,
गेरुए कपड़ों में गौतम ने गुज़ारा कर लिया.   
...............................................................
निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by विजय मिश्र on December 5, 2013 at 5:32pm
बहुत प्यारी सी , बधाई
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2013 at 5:26pm

बहुत खूब आदरणीय सुन्दर ग़ज़ल कही है बधाई स्वीकारें

Comment by Meena Pathak on December 5, 2013 at 4:23pm

बहुत सुन्दर , लाजवाब रचना बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय |सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2013 at 2:34pm

आदरणीय नीलेश भाई , लाजवाब , बेमिसाल , कामयाब गज़ल के लिये आपको ढेरों बधाइयाँ !!!!! किसी एक शे र को नही छाटूंगा , मुह्हे सभी अच्छे लगे !!!

Comment by Sushil Sarna on December 5, 2013 at 1:22pm

behtreen sheron kee behtreen gazal...wah bahut khoob sir

Comment by Saarthi Baidyanath on December 5, 2013 at 1:17pm

इक तरफ़ तो मौत थी औ इक तरफ़ बेइज्ज़ती,
और हम करतें भी क्या, मरना गवारा कर लिया.

एक तुम जो हर ख़ुशी के बीच थे पर खुश न थे, 
एक हम थे ग़म में डूबे, पर गुज़ारा कर लिया....पूरी ग़ज़ल दमदार है !...इन चार मिसरों पर तो दिल आ गया ...उम्दा 

Comment by Shyam Narain Verma on December 5, 2013 at 11:43am
बहुत खूब........................

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