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ग़ज़ल -निलेश 'नूर' -लोग फिर

ग़ज़ल 
लोग फिर बातें बनाने आ गए,
यार मेरे, दिल दुखाने आ गए. 
...

जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,
मौत को जो घर दिखाने आ गए.
...

रूठनें का लुत्फ़ आया ही नहीं,
आप पहले ही मनाने आ गए. 
...

दो घडी बैठो, ज़रा बातें करो,
ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.
...

जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.
...

राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये. 
............................................................
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 644

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 3, 2013 at 8:48am

शुक्रिया आदरणीय  वीनस केसरी जी; ही पर विचार करता हूँ   कृपया ..इता दोष पर कुछ और मार्गदर्शन करें ...
सादर 

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:25am

वाह भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है तमाम अशआर अच्छे हुए है

मतला में ईता दोष पर विचार कर लीजिए
तीसरे शेर में ही का दोहराव खटक रहा है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2013 at 5:49pm

आदरणीय नीलेश भाई , बहुत खूब , सरल सुन्दर गज़ल कही है , ढेरों बधाई !!!!  मतले मे वचन दोष के विषय मे सोच कर देख लीजियेगा , कह नही सकता पर खटका ज़रूर है !!!!

Comment by Sarita Bhatia on December 2, 2013 at 5:11pm

वाह वाह आदरणीय निलेश जी कमाल की गजल ,हार्दिक बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 4:58pm

वाह वाह आदरणीय कमाल के अशआर पूरी की पूरी ग़ज़ल जानदार शानदार जिंदाबाद है आदरणीय एक एक अशआर पर वाह वाह और ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. 

Comment by वेदिका on December 2, 2013 at 3:19pm

लोग फिर बातें बनाने आ गए,
यार मेरा दिल दुखाने आ गए. ... बहुत सादगी भरा मतला!

जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए..... आज की हकीकत बयान करता हुआ शेअर!

बधाई!! 

Comment by sanju shabdita on December 2, 2013 at 3:12pm

राह से गुज़रा पुरानी जब कभी,
याद कुछ चेहरे पुराने आ गये.            वाह

दो घडी बैठो, ज़रा बातें कर                आज के समय में दुर्लभ     
ये भी क्या बस मुँह दिखाने आ गए.

इस सुंदर कामयाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको    

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 2:39pm

आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2013 at 12:18pm

जिंदगी का ज़िक्र उनसे क्या करूँ,
मौत को जो घर दिखाने आ गए.-----क्या बात है नीलेश जी कमाल का शेर 
...जेब अपनी जब कभी भारी हुई,      
लोग भी रिश्ते निभाने आ गए.---बेहतरीन कटाक्ष 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको 
...

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