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हाकिम निवाले देंगे

गाँव-नगर में हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे

 

सूख गयी आशा की खेती

घर-आँगन अँधियारा बोती

छप्पर से भी फूस झर रहा

द्वार खड़ी कुतिया है रोती

 

जिन आँखों की ज्योति गई है

उनको आज दियाले देंगे

 

सर्द हवाएँ देह खँगालें

तपन सूर्य की माँस जारती

गुदड़ी में लिपटी रातें भी

इस मन को बस आह बाँटती

 

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे

 

चूल्हे हैं अब राख झाड़ते

बासन भी सब चमक रहे हैं

हरियाई सी एक लता है

फूल कहीं पर महक रहे हैं

 

मासूमों को पता नहीं है

वादे और हवाले देंगे

 

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित) 

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Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 2:46pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 2:45pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 2:41pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार!

आपकी रचना अप्रतिम है! इसे आपने साझा किया इसके लिए आपका हार्दिक आभार!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 30, 2013 at 2:23pm

जय हो, जय हो आदरणीय आपकी बारंबार जय हो । बहुत ही बढि़या रचना है, क्‍या खबर ली है, यहां खबर भी ली गई, विवशता का भी चित्रण किया गया । जिस दिन मिलूंगा रसगुल्‍ले गिन-गिन कर पूरे दस खिलाउंगा, सादर

Comment by Meena Pathak on November 30, 2013 at 2:09pm

शानदार प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी | सादर 

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 1:26pm

गाँव-नगर में हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे......gazab aa.Brijesh jee rachna ka aarambh hee vartmaan vyavstha kee pol khol rahaa hai....smpoorn rachna jis uddeshy ko lekar chalee hai ant tak uska nirvaah kiya hai....saral bhaasha, sundr shabd chayan iskee vishestha hai....is yatharthparak rachna kee sundr prastuti ke liye haardik haardik badhaaee aa.Brijesh Neeraj jee


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Comment by rajesh kumari on November 30, 2013 at 11:53am

सूख गयी आशा की खेती

घर-आँगन अँधियारा बोती

छप्पर से भी फूस झर रहा

द्वार खड़ी कुतिया है रोती

 

जिन आँखों की ज्योति गई है

उनको आज दियाले देंगे

 वाह्ह्ह लाजबाब प्रस्तुति ब्रिजेश जी ,जानदार व्यंगात्मक तमाचा राजनीति के ऊपर ,वोट के वक़्त कितने ढपोल शंख बजते हैं सब को पता है,ढेरों बधाई इस प्रस्तुति पर  ,इस प्रस्तुति को पढ़ कर अपनी लिखी एक कविता की  याद आई ---

सूखे अधरों पर मुस्कान

आँखों में रंगत आई

जब रसोई से आज,

धुआं उठता दिया दिखाई 

काले पतीले में माँ

चमचा आज चलाएगी

मांग के लाई थी  जो चावल,

उनसे खीर बनाएगी 

भूख से सिकुड़ी आँतों में

जब थोड़ी आस बंध आई ,

लार  टपकाते मरियल कुत्ते

ने भी पूँछ हिलाईI

सूखेगा आज टपकता छप्पर ,

गीला आटा भीगा बिस्तर

देखो देखो सूरज ने अब,

काली चादर हटाई

सूखे अधरों पर मुस्कान

आँखों में रंगत आई I

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 11:42am

आदरणीय सारथि जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 11:41am

आदरणीय श्याम जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Saarthi Baidyanath on November 30, 2013 at 11:41am

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे....लाजवाब लाजवाब ! आदरणीय बृजेश जी , बेहद कमाल की रचना ! बधाई !

कृपया ध्यान दे...

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