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कभी रोटी, कभी कपड़े के लिए गिड़गिड़ाना किस को कहते हैं 

किसी अनाथ बच्चे से पूछो रोना किस को कहते हैं 

कभी उसकी जगह अपने को रखो फिर जान जाओगे 

कि दुनिया भर का दुःख दिल मे समेटना किस को कहते हैं 

उसकी आँखें, उसके चेहरे को एक दिन घूर के देखो 

मगर ये मत पूछना कि वीराना किसको कहते हैं ... 

तुम्हारा दिल कभी छोड़े अगर दौलत कि खुमारी को  

तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि गरीबी किसको कहते हैं .... 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 20, 2013 at 8:53pm

अच्छी कविता आदरणीय आमोद जी बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on November 20, 2013 at 12:24pm

भाव अच्छा है , इस प्रयास के लिए बधाई आपको । 

कृपया ध्यान दे...

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