For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया

देख सियासतदानों ने सत्ता पाकर क्या काम किया

कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया

 

इल्म नया दे रस्म रिवाज अदब का काम तमाम किया

मगरीबी तहजीबें अपनाकर फिर मुल्क गुलाम किया

 

देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे

बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया

 

सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया

 

वीराना था ये घर मेरा तेरे आने से पहले

दीप जलाकर प्रेम का तुमने इसको पावन धाम किया

 

संदीप कुमार पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित  

 

Views: 642

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on November 18, 2013 at 7:06am

आ. संदीप जी सुन्दर कथ्य से सजी ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको !

Comment by वीनस केसरी on November 18, 2013 at 3:15am

मात्रा लिख दीजिए भाई, पाठकों को तक्तीअ समझने में आसानी होगी
सादर

Comment by वेदिका on November 18, 2013 at 12:31am

सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया      वाह! अप्रितम!

नायाब गजल पर दिली दाद कुबूलिए संदीप भैया!!! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 8:31pm

आदरणीय संजय भाई , समाज की वास्तविकता बयाँ करती आपकी रचना के लिये आपको बहुत बधाई !!!!

सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया  -    --     लाजवाब बात कही है !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2013 at 7:48pm

पटेल जी साधुवाद i
कडवी  सच्चाई बयाँ  करने हेतु  धन्यवाद  i  पर आपके घर  का वीराना और अँधेरा  मिटा  प्रेम पल्ल्वित हुआ,  इसकी खुशी है i

रचना मन भावन है i

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 17, 2013 at 6:46pm

आदरणीय शिज्जू जी सादर

आपकी सराहना सर आँखों स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

बहुत बहुत आभार आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 17, 2013 at 5:15pm

//सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया//  

बहुत बढ़िया आदरणीय संदीपजी दिली दाद कुबूल फरमायें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service