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आत्मीयता !!!! (लघु कथा)

शहर के एक नए भाग में पहुँच कर एक गन्तव्य् का पता पूछ रहा था। 
कार से उतरते हुए एक सभ्रांत व्यक्ति को पूछा तो उसने नीचे से ऊपर तक देखा और आगे बढ़ गया। मार्किट की तरफ जा रही एक महिला को पता पूछना चाहा तो सिवाय रुखाई के कुछ न हाथ लगा। कालेज जाने  वाले एक विद्यार्थी को देख उम्मीद जगी पर कोई फायदा नहीं हुआ। पते का कागज हाथ में लिए कुछ सोच ही रहा था कि एक आवाज कानो में पड़ी 'भैय्या बहुत देर से किसे पूछ रहे हो ?'
चौक की सफाई के बाद सुस्ताने बैठी एक सफाई कामगार महिला की आवाज थी। 
मै  उसकी तरफ बढ़ा 
पते का कागज़ देखते ही वह सविस्तार पता समझने लगी । मै भी उसके सद्भाव को नतमस्तक हो सर हिला रहा था। 
'चाहो तो आपको वहाँ तक छोड़ आती हूँ ' वह फिर बोली। 
'ना ! ना ! मै  चला जाउंगा',मैंने कहा। 
उसकी सहृदयता को मै देखता ही रह गया    ....... 
दूसरे दिन सुबह मै अपने बरामदे पे खड़ा था 
मेरे मोहल्ले का सफाई कर्मी सुबह की  सफाई कर अपना पसीना पोछ ही रहा था कि मै  एक पानी से भरी बोतल लेकर उसके पास लपका 
' लो पानी पी लो प्यास लगी होगी '
इतनी आत्मीयता !!!!
वह मुझे देखता ही रह गया। 
पानी की  बोतल से दोनों के हाथ जुड़े थे  …। 
---------------------------------------------------
अविनाश बागड़े 

Views: 676

Comment

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Comment by Shubhranshu Pandey on November 20, 2013 at 9:42am

आदरणीय अविनाश जी,

एक सुन्दर भाव को कथा में पिरोया है..संस्कार और सम्मान किसी भी चीज का मोहताज नहीं होता है...

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 6:29pm

एक तार्किक विन्दु को साझा किया है आपने, आदरणीय अविनाशजी.

लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई.

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 19, 2013 at 11:08am

सामयिक दौर पर दृष्टी डाली जाये तो, शायद आत्मीयता या जिसको मानवता कह लो , अपरिचित स्थानों पर देखने को मिलेगी , बहुत सुन्देश देती लघुकथा पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अविनाश जी

Comment by AVINASH S BAGDE on November 19, 2013 at 9:42am
Comment by AVINASH S BAGDE on November 19, 2013 at 9:40am
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:52pm

आज की शिक्षा और बड़े घरानों के संस्कार पीढ़ी को बदज़ुबान और अकड़बाज बना रही है , कुछ इसी प्रकार की घटना मेरे साथ भी हो चुकी है। बधाई अविनाश भाई सुंदर कथा के लिए।

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 18, 2013 at 1:57pm

आदरणीय अविनाश सर बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने इस लघुकथा के जरिये पढ़कर मन प्रसन्न हो गया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by AVINASH S BAGDE on November 18, 2013 at 10:44am

आभार सभी सुधि जनो का ---भाई अरुण कुमार निगम ,गिरिराज भंडारी जी और डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव .

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 18, 2013 at 9:26am

आदरणीय अविनाश जी, बहुत दिनों बाद आपको देखना व पढ़ना मन को प्रसन्न कर गया . पनपी हुई तथाकथित नई संस्कृति में संवेदनायें खोई जरूर हैं, मरी नहीं हैं. सुन्दर लघुकथा...............बधाई................   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 8:28pm

आदरणीय , सुन्दर भावनाओं को लघुकथा मे पिरोया है आपने !!!! आपको बधाई !!!!

कृपया ध्यान दे...

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