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जो रख हाथ तू माथे पे मेरे

जो रख हाथ तू माथे पे मेरे
मैं रोना भूल जाऊँगा
जो दे दे हाथ तू हाथों में मेरे
मैं उठ कर खिल खिलाऊँगा
ना जाने दे मुझे उस पर तक
ना फिर मैं लौट पाऊँगा
ये क्या ज़िद है मेरी बच्चों के तरह
कि मैं फिर से लड़खड़ाऊँगा
तू झिड़क दे हाथ मेरा
मैं फिर अंगुली बढ़ाऊँगा
मैं बैठा याद करने अंगुलियों पर
मैं किसको भूल जाऊँगा
रही है मेरी हमसफ़र मेरी ये ज़िंदगी
मैं कैसे भूल जाऊँगा

अप्रकाशित अमुद्रित
अजय कुमार शर्मा

Views: 528

Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on November 16, 2013 at 10:40pm

जो मासूमियत उभर कर आयी है कविता में आपकी वो
सच में बहुत तारीफ के काबिल है
बहुत बहुत बधाई ।

Comment by बृजेश नीरज on November 16, 2013 at 9:17pm

अच्छी है! बधाई आपको!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 16, 2013 at 12:22pm

सुंदर रचना हेतु हार्दिक बधाई ..अजय जी 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 15, 2013 at 10:19pm

बहुत पसंद आई 

इ इस रचना के लिए 

Comment by Meena Pathak on November 15, 2013 at 5:33pm

बहुत सुन्दर रचना | बधाई आप को आदरणीय ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 15, 2013 at 9:20am

आदरणीय अजय जी सुंदर रचना दाद कुबूल करें

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 9:11pm

सुंदर रचना हेतु हार्दिक बधाई आ0 अजय जी....

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:52pm

सुन्दर रचना आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 14, 2013 at 12:54pm

आदरणीय अजय भाई , सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपको बधाई !!!!

Comment by Meena Pathak on November 14, 2013 at 12:04pm

बहुत सुन्दर रचना | बधाई स्वीकारें आदरणीय | सादर 

कृपया ध्यान दे...

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