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ज्योतिपर्व की रात में ,करो तिमिर का नाश!

सच ही जीता है सदा ,ऐसा हो विश्वास !!

शांतिदीप घर घर जले ,समय तभी अनुकूल !
आपस में सौहार्द हो,कटुता जाओ भूल !!

ज्योतिपर्व की रात में ,तुम्हे समर्पित तात !
जीवन यूँ जगमग रहे ,दीपों की सौगात!!

मन में शुभ संकल्प लो,हाँथो में ले दीप !
अंतस का कल्मष छटे ,मन का आँगन लीप !!

मन का अँधियारा छटे,कटे दम्भ का जाल !
पहनाओ कुछ इस तरह ,दीपों की इक माल !!

ज्योतिपर्व फिर आ गया ,लेकर शुभ सन्देश !
अँधियारा न दिखे कहीं ,फूले फले स्वदेश !!

जगमग करता ही रहे ,यह प्यारा संसार !
अँधियारे को त्यागकर ,भरो ज्योति भण्डार !!
***********************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Dr.Prachi Singh on November 6, 2013 at 7:35pm

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 

आपके लेखन में आती परिपक्वता आनंददायी है... बहुत बहुत बधाई इस कथ्य भाव समृद्ध सुन्दर दोहावली के लिए 

एक बात अपनी समझ भर सांझा करना चाहती हूँ...

प्रस्तुतियां यदि उपदेशात्मक की जगह आचरणात्मक रूप में प्रस्तुत हों तो ज्यादा प्रभावशाली होती हैं..

यथा, 

ज्योतिपर्व की रात में ,करो तिमिर का नाश!

सच ही जीता है सदा ,ऐसा हो विश्वास !!

ज्योतिपर्व की रात में ,करें तिमिर का नाश!

सच ही जीता है सदा ,ऐसा हो विश्वास !!

मन में शुभ संकल्प लो,हाँथो में ले दीप !                                   मन में शुभ संकल्प लें 
अंतस का कल्मष छटे ,मन का आँगन लीप !!

मन का अँधियारा छटे,कटे दम्भ का जाल !
पहनाओ कुछ इस तरह ,दीपों की इक माल !!               पहनाएं कुछ इस तरह 

शायद सहमत हों!!

इस उन्नत प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें 

Comment by बृजेश नीरज on November 6, 2013 at 5:04pm

वाह! बहुत ही सुन्दर दोहे! जय हो! आपको हार्दिक बधाई!

//सच ही जीता है सदा ,ऐसा हो विश्वास !!// मुझे लगता है कि इसे यदि यूँ कहें- 'सच ही जीतेगा सदा, ऐसा हो विश्वास' तो अधिक उपयुक्त होगा. ये मेरी सोच है. आप अन्यथा न लें!

सादर!

Comment by ram shiromani pathak on November 6, 2013 at 2:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी ।सदर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 2:03pm

अनुज राम बहुत ही सुन्दर उत्तम दोहावली रची है आपने भाई आनंद आ गया पढ़कर हृदयतल से बधाई स्वीकारें.

Comment by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 9:57am

बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई जीतेन्द्र  जी। सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 9:51am

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण जी। सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 5, 2013 at 9:49am

आदरणीय राम भाई, सुंदर संदेशप्रद दोहावली पर बहुत बहुत बधाई व् दीपावली की मंगल शुभकामनायें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2013 at 9:36am

सुन्दर दोहों के लिए बधाई और दीपावली की शुभकामनाए स्वीकारे श्री राम शिरोमणि पाठक जी |

तुम्हे समर्पित तात - पूर्णः देखे 

Comment by ram shiromani pathak on November 4, 2013 at 10:01pm

बहुत बहुत आभार भाई नीरज मिश्रा जी  ।सादर  

Comment by Neeraj Nishchal on November 4, 2013 at 9:23pm

बहुत ही उत्कृष्ट रचनाये आदरणीय पाठक जी

मन का अँधियारा छटे,कटे दम्भ का जाल !
पहनाओ कुछ इस तरह ,दीपों की इक माल !!

बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई

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