For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाज़ार में स्त्री

छोड़ता नही मौका
उसे बेइज्ज़त करने का कोई

पहली डाले गए डोरे 
उसे मान कर तितली 
फिर फेंका गया जाल 
उसे मान कर मछली 
छींटा गया दाना
उसे मान कर चिड़िया

सदियों से विद्वानों ने 
मनन कर बनाया था सूत्र 
"स्त्री चरित्रं...पुरुषस्य भाग्यम..."
इसीलिए उसने खिसिया कर 
सार्वजनिक रूप से 
उछाला उसके चरित्र पर कीचड...

फिर भी आई न बस में
तो किया गया उससे 
बलात्कार का घृणित प्रयास...

वह रहा सक्रिय 
उसकी प्रखर मेधा 
रही व्यस्त कि कैसे 
पाया जाए उसे...
कि हर वस्तु का मोल होता है 
कि वस्तु का कोई मन नही होता 
कि पसंद-नापसंद के अधिकार 
तो खरीददार की बपौती है 
कि दुनिया एक बड़ा बाज़ार ही तो है 
फिर वस्तु की इच्छा-अनिच्छा कैसी 
हाँ..ग्राहक की च्वाइस महत्वपूर्ण होनी चाहिए 
कि वह किसी वस्तु को ख़रीदे 
या देख कर
अलट-पलट कर 
हिकारत से छोड़ दे...

इससे भी उसका 
जी न भरा तो
चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया...

क़ानून, संसद, मीडिया और 
गैर सरकारी संगठन 
इस बात कर करते रहे बहस 
कि तेज़ाब खुले आम न बेचा जाए 
कि तेज़ाब के उत्पादन और वितरण पर 
रखी जाये नज़र 
कि अपराधी को मिले कड़ी से कड़ी सज़ा
और स्त्री के साथ बड़ी बेरहमी से 
जोड़े गए फिर-फिर 
मर्यादा, शालीनता, लाज-शर्म के मसले...!

(मौलिक अप्रकाशित) 

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2013 at 5:23am

आदरणीय अनवर भाईजी. कुछ बातें ऐसी होती हैं जो सुगढ़ कथ्य में आते ही अपनी व्यवस्थित राह ढूँढने लगती हैं और न मिलने पर उच्छॄंखल हो उठती हैं. इधर कविताओं के कथ्य कई बार से सपाट हो जा रहे हैं. आपकी संवेदनशीलता पर हम सदा नत रहे हैं. अपेक्षा है, आपकी रचनाओं में काव्य पूर्ववत अपने नैसर्गिक रूप में उभर कर आयेगा.

सादर

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 12:34pm
सुहैल भाई , जानदार पेशकश और मुद्दा जिन्दा और जमाने के लिए जलालत की खुल्लमखुल्ला फजीहत . बहुत मुनासीब फरमाया.इंसान हैवान से भी बत्तर हो गया है . औरतों को तिजारत और हिकारत की जींस समझते हैं ,बेहयाई बेहिसाब है .मुबारकवाद यह जलता अंगारा परोसने के लिए .
Comment by Pradeep Kumar Shukla on October 28, 2013 at 4:42pm

waah waah waah .... behad sashakt lekhan .... iski jitni tareef ki jaaye kam hai .... badhai Anwar saheb ... haan, ek baat kahna chahunga, "स्त्री चरित्रं...पुरुषस्य भाग्यम..." is pankti ko aap ek antare mein galat dhang se prayog kar baithe mere anusaar ... meri samjh se yeh pankti vidvanon ne bahut hi adhik chintan manan ke upraant likhi hogi ... waise yeh bhi sambahv hai ki main aapke ukt antare ka sahi arth nahin samjha shayad

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 28, 2013 at 3:55pm
वाह अनवर साहब वाह ----- समाज के दुखती रग पर हाथ रख दी आपने । कब उबरेंगे हम इस मानसिकता से ? आपके सफल प्रयास के लिये बधाई
Comment by राजेश 'मृदु' on October 28, 2013 at 3:07pm

आपके द्वारा उठाए गए हर प्रश्‍न से सहमत होते हुए भी प्रस्‍तुतिकरण से सहमत नहीं हो पाया जिसका कारण रचना की सार्वभौमिकता है जिसमें पूरी नारी जाति को एक शिकार की तरह प्रस्‍तुत किया गया है और पुरुषवर्ग एक आखेटक । बात यहीं चुभती है बाकी आपकी इच्‍छा, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2013 at 10:35pm

स्त्रियों के बारे में चली आ रही मानसिकता पर सुन्दर रचना हुई है अनवर भाई | इस हेतु हार्दिक बधाई |

वैसे प्राचीन काल से ही अग्नि परीक्षा स्त्रियों को ही देनी पड रही है | "ढोर गंवार शुद्र पशु नारी, ये सब ताडन के अधिकारी"

जैसी पंक्तियाँ पढने को मिलती है | अब इस मानसिकता को बदलने का जोरदार प्रयास करने की आवश्यकता है |

हमारी न्याय व्यवस्था का सक्रीय प्रयास शुभ संकेत है, जिस पर  संसद की मोहर लगाने सही चयन का दायित्व निर्वाह 

जनता को करना होगा 

Comment by anwar suhail on October 27, 2013 at 7:56pm

टंकण त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ...भाई सुशील जोशी जी का आभार...

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 2:02pm

काम पिपासा में अंधे दरिन्दों का स्त्री पर अत्याचार एवं भोथरे तंत्रों के अनर्गल प्रलाप पर प्रहार करती एक अच्छी रचना के लिये साधुवाद.... कुछ त्रुटियों पर सुशील भाई से सहमत !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 27, 2013 at 8:06am

आ0 अनवर भाई , स्त्र्रियों को लेकर समाज की मानसिकता का सही वर्णन किया भाई , ये मानसिकता  कानून से नही बदलने वाली है !! एक एके को बदलना होगा !!!! आपको बधाई !!!!

Comment by Sushil.Joshi on October 27, 2013 at 6:32am

स्त्रियों के मर्म को दर्शाती एक सार्थक अभिव्यक्ति है आ0 अनवर भाई...  आजकल जिस प्रकार की परिस्थियाँ हमारे समाज में हैं, वह निश्चित रूप से स्त्रियों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करती हैं.................. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति के लिए.....

तीसरी पंक्ति में 'पहली डाले गए डोरे'............ में 'पहले डाले गए डोरे' कर टंकण त्रुटि को समाप्त किया जा सकता है...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"नमस्कार,  शुभ प्रभात, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर 'धामी' जी, कोशिश अच्छी की आपने!…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब!अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"लोक के नाम का  शासन  ये मैं कैसा देखूँ जन के सेवक में बसा आज भी राजा देखूँ।१। *…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service