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धान..कब आओगे खलिहान!

आकाश में छाये काले बादल
किसान के साथ-साथ 
अब मुझे भी डराने लगे हैं...

ये काले बादलों का वक्त नही है 
ये तेज़ धुप और गुलाबी हवाओं का समय है 
कि खलिहान में आकर बालियों से धान अलग हो जाए 
कि धान के दाने घर में पारा-पारी पहुँचने लगें 
कि घर में समृद्धि के लक्षण दिखें 
कि दीपावली में लक्ष्मी का स्वागत हो

कार्तिक मास में काले बादल 
किसान के लिए कितने मनहूस 
संतोसवा विगत कई दिनों से 
कर रहा है मेहनत 
धान के स्वागत के लिये 
झाड-झंखार कबाड़ के
उबड़-खाबड़ चिकना के 
गोबर-माटी से लीप-पोत के 
कर रहा तैयार खलिहान 
कि अचानक फिर-फिर 
झमा-झम बारिश आकर 
बिगाड़ देती खलिहान...

इस धान कटाई, गहाई के चक्कर में 
ठेकेदारी काम में 
जा नही पाता संतोसवा
माथे पे धरे हाथ 
ताकता रहता काले बादलों को

हे सूरज!
का तुम जेठ में ही तपते हो 
कहाँ गया तुम्हारा तेजस्वी रूप 
हमारी खुशहाली के लिए एक बार 
बादलों को उड़ा दो न 
कहीं दूर देश में 
जहां अभी खेतों में पानी की ज़रूरत हो...

(मौलिक अप्रकाशित ) 

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Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 9:16pm

हे सूरज!
का तुम जेठ में ही तपते हो 
कहाँ गया तुम्हारा तेजस्वी रूप 
हमारी खुशहाली के लिए एक बार 
बादलों को उड़ा दो न 
कहीं दूर देश में 
जहां अभी खेतों में पानी की ज़रूरत हो...... एक किसान की मनोदशा एवं हालात बयान करती सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई आ0 अनवर भाई जी......

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 3:30pm
सुहैल भाई ! अभी की वारिश धान की बालियों के लिए हानिकारक है , बोझा खेत से खरिहान तक में राईछिया हो जाता है ,किसानों के श्रमफल शुद्ध रूप में घर नहीं पहुंच पाते . बरषा बरसात में ही सुहाता है .सुंदर रचना ,बधाई

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