For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

कोमल काया फूल सी, अति मनमोहक रूप ।
तेरे आगे चाँद भी, लगता मुझे कुरूप ।।

भोलापन अरु सादगी, नैना निश्छल झील ।
जो तेरा दीदार हो, धड़कन हो गतिशील ।।

गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।

अधर पाँखुरी पुष्प से, कोमल गाल गुलाब ।
तुमको पाकर हो गया, पूरा दिल का ख्वाब ।।

ज्यों झूमर से घर सजा, त्यों झुमकें से कान ।
आभूषण ही लाज का, नारी का सम्मान ।।

खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।

छम छम छम पायल बजे, लूटे चैन करार ।
ईश्वर से इतनी दुआ, अमिट रहे यह प्यार ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 915

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2013 at 5:30pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष, आपसे सादर निवेदन है कि टिप्पणी करने के क्रम में ऐसी बातें न लिख दिया करें जो मंच के उद्येश्यों पर ही कटाक्ष हो.  बात पाठक तक तो फेसबुक के माध्यम से भी पहुँचायी जा रही है. फिर इस मंच पर सुधीजनों को इतना समय देने, रचना की प्रस्तुतियों पर इतना मंथन करने और उसके अनुसार इतने गहन प्रयासों की आवाश्यकता ही क्या है ?

पुनः, यह मंच किसी ब्लॉगिया परिपाटी को नहीं मानता कि अच्छी-अच्छी बातें की जाय तो अन्य भी वापस अच्छी-अच्छी टिप्पणी किया करेंगे. मंच की अवधारणा के अनुसार,  यहाँ रचनाकार से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण रचनाकर्म और स्वयं रचना होती है. 

विश्वास है, आदरणीय, मैं अपनी बात सादर प्रस्तुत कर पाया.

शुभ-शुभ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 24, 2013 at 4:17pm

अरुण जी ..पढ़कर आनंद आ गया ..दोहों के तकनीकी पक्ष के बारे में जानकारी नहीं है ..बात पाठक तक पहुचना चाहिए ..आपकी बात पहुची ..आपको तहे दिल बधाई के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2013 at 2:03pm

बढिया दोहे हुए हैं, अरुण भाई. बधाई लें.
निम्नलिखित दोहे भाव, अर्थ और संप्रेषण की दृष्टि से पूरी तरह से संयत हैं -


गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।

खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।

छम छम छम पायल बजे, लूटे चैन करार ।
ईश्वर से इतनी दुआ, अमिट रहे यह प्यार ।।

बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.  
अन्य कई में तुकन्तता का आग्रह तथ्य पर ही भारी पड़ रहा है.


एक बात :

मैं आपके माध्यम से साझा करना चाहता हूँ कि छंदों में और के लिए अरु का प्रयोग वस्तुतः उस समय होता है, या होना चाहिये जब छंदों की भाषा में आंचलिक शब्दों की बहुतायत हो. और छंद का प्रारूप आंचलिक हो.
आपके दोहे की भाषा खड़ी या आधुनिक हिन्दी है. यहाँ और का द्विमात्रिक रूप औ’ साहित्यिक हिन्दी में पूरी तरह स्वीकृत है.
शुभ-शुभ

Comment by Meena Pathak on October 24, 2013 at 1:14pm
सभी दोहे एक से बढ़ कर एक | पढ़ के मन आनन्दित हुआ, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण जी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 24, 2013 at 10:25am

नारी रूप की सुन्दरता का सजीव चित्रण करते दोहावली ने, मन मोह लिया आदरणीय अरुण जी, एक से बढकर एक दोहा..यह दोहे बहुत पसंदीदा हुए, बधाई स्वीकारें


ज्यों झूमर से घर सजा, त्यों झुमकें से कान ।
आभूषण ही लाज का, नारी का सम्मान ।।

खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 10:15am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर स्नेह यूँ ही बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 10:14am

हार्दिक आभार रवि भाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 10:13am

भाई अनुज राम बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 10:13am

हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश सर स्नेह यूँ ही बना रहे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 10:12am

हार्दिक आभार आदरणीय रमेश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service