सांझ ढली
कुछ टूटा ,
भर गयी रिक्तता.
सब मूंद दिया कसकर.
अन्दर बाहर अब है,
एक रस.
घुप्प अँधियारा.
दिवस का सब्जबाग,
छुप गया तमस के आवरण में.
धवल रश्मि, तुम्हारा सौंदर्य ...
अब है बेमोहक, बेमतलब , अर्थ हीन
अब मैं पराभूत नहीं,
नहीं परावश...
नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बेहद सुंदर एवं गहन भाव लिए इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ0 नीरज जी....
हार्दिक आभार जीतेंद्र गीत जी
सुंदर सशक्त रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी
भाई जी, आपने वास्तव में उन विन्दुओं की ओर साग्रह इंगित किया है जो इस मंच के उद्येश्य और स्वरूप के विपरीत है. खैर हम सभी रचनाकर्म के क्रम में पाठकधर्म भी निभायें. अन्यथा, रचनाकर्म पर सार्थक टिप्पणियाँ और परिचर्चा न कर परस्पर प्रसन्न करने के बेमतलब की आदत पाल लेंगे. इस पर फिर कभी.
सादर
आदरणीय सौरभ जी .. हार्दिक हार्दिक आभार .. आपकी टिपण्णी ने हौसला दिया , आपने जिस तरह ध्यान पूर्वक पढ़कर कविता के मर्म को रेखांकित किया , मेरा लिखना सार्थक हुआ , वरना सुबह से तो लग रहा था ... यह कविता निरर्थक ही रही :)
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी हार्दिक आभार आपका.
भाई नीरजजी, आपकी रचना ने वस्तुतः ध्यान आकर्षित किया है.
मानसिक निर्भरता का अचानक तिरोहित हो जाना क्षणिक असंतुलन का कारण अवश्य हुआ करता है लेकिन यह बन्धनमुक्तता जीवन के अग्रसरित पलों को सार्थकता भी देती है.
बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें, भाईजी.
शुभ-शुभ
आदरणीय , नीरज भाई , सुन्दर रचना , आपको हार्दिक बधाई !!!
आभार आदरणीय विजय मिश्र साहब ..
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online