बर्ताव
बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !
मुलायम नहीं..
गुदाज़ लोथड़ों में
लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत
तीन-तीन अंधे पहरों में से
कुछेक लम्हें ले लेने भर से
बात बनी ही कहाँ है कभी ?
चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक
बस चाहिये
आगे,
देर गयी रात
उन तीन पहरों की कई-कई आँधियों के बाद
लोथड़े की
तेज़धार चाकू की निर्दयी नोंक
खरबूजा-खरबूजा खेलती है
सुन्न पड़े के साथ
बेमतलब सी भोर होने तक.
*******************************
-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
भाई जीत जी, आपकी टिप्पणी को बार-बार पढ़ रहा हूँ और रचना की पंक्तियों का अक्स यों उभर कर आ रहा है मानों आईना देख रहा होऊं. आपकी रचनात्मकता मंच के लिए आश्वस्ति का कारण है.
आपका अनुमोदन एक संवेदनशील पाठक का अनुमोदन है.
शुभ-शुभ
आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपकी संवेदना की मुखर भाषा ने मुझे बहुत हद आश्वस्त किया है.
सामाजिक और व्यावहारिक सम्बन्धों में घुस आयी आक्रामक अपेक्षाओं को शब्द देने का प्रयास आपको प्रभावित कर पाया, यह मेरी रचना के लिए संतुष्टि है.
सादर
अनन्य अनुज अभिनव अरुणजी, आदरणीय सुशीलजी, अदरणीया मीनाजी, भाई अरुन अनन्त जी, भाई सारथीजी, आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद.
कुछ कहने के मैं तो योग्य नहीं! कविता अन्दर तक झिंझोड़ देती है!
सतही और औपचारिक भावार्थों में जीते हम उस दिशा में दौड़े जा रहे हैं, जहाँ सूरज एक कृत्रिम मुस्कान लिए हमारा स्वागत करने को उद्दत है. छिछली चाहतों का बोझ ढोते संवेदनाओं की परतें चिंदी-चिंदी हो चुकी हैं. रिश्ते बाजारवादी मनोवृतियों में महज़ खरीद-फरोख्त की मानसिकता की भेंट चढ़ गए हैं.
रचना एक उदहारण है उन तमाम लोगों के लिए जो अतुकांत को महज़ गद्य की पंक्तियों का गठ्ठर समझते हैं. अतुकांत को समझने सीखने के लिए इस रचना से बेहतर उदहारण क्या हो सकता है!
आप एक उदहारण हैं कि रचनाकार यदि अपने कर्म के प्रति सतर्क, ईमानदार और सचेत है, तो विधा उसके रस्ते का रोड़ा नहीं बनती. सिर्फ सतही भावाभिव्यक्तियाँ को ओढ़ना-बिछाना ही रचनाकर्म नहीं.
आपको सादर नमन!
चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक
बस चाहिये ..
गज़ब का चुम्बकत्व, रचना में निहित है ! बहुत बढ़िया साहब ....क्या कहूँ ...अनंत बधाइयाँ ! सादर :)
आदरणीय सौरभ सर कोटिशः बधाई स्वीकारें, कविता पर कुछ कहना सरल नहीं भावपद इतना गहरा है कि कुछ कहने हेतु सम्पूर्ण शब्दकोष टटोलने पर हासिल भी हुआ तो केवल निःशब्द. एक ही सांस में कई बार पढ़ गया पुनः बहुत बहुत बधाई
निःशब्द हूँ आदरणीय सौरभ जी आप की रचना पढ़ कर | रचना हेतु बधाई स्वीकारें
सादर
रिश्तों की भी अपनी अलग दुनिया होती हैं, उसी दुनिया के गर्त से निकली एक रचना जो हीरे मे हुई अनगिनत बारीक कटिंग और हर कटिंग मे निहित एक कोण तथा हर कोण से खुद को दिखता एक बिंब, बहुत ही खूबसूरत हुई है यह रचना, बहुत बहुत बधाई इस कृति पर |
आदरणीय सौरभ भाई , बड़ा कठिन है आपके इशारों को समझना !!!!! फिर भी !!!!!
रिश्तों मे मरती हुई , मरी हुई आत्मीयता और केवल स्थूलता की परिधि में सिमटते हुये रिश्तों की वस्तविकता की ओर इशारा करती हुई आपकी ये रचना लगती है !!! आदरणीया राजेश कुमारी जी से सहमत हूँ // पाठको की परीक्षा तो जरूर लेगी ये रचना //
!!!!!! सादर नमन आपको !!!!!!
नाजुक रिश्ते, जो कि इतने प्रभावी व् मजबूत होते है,मन की कई कई नकारात्मक अन्तर्वेद्नाओं के लम्बे खिचाव से भी उन पर कोई असर नही पड़ता, इक पल की सकारात्मक सोच उन्हें, वापस उसी गहराई से जोड़े रखती है, बस एक-दूसरे की भावना समझ आ जानी चाहिए, अथाह गहरी, बार बार अपने गहरे भाव की ओर आकर्षित करती कविता पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय सौरभ जी
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