कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये
दशानन था रावण
इनके हैं सौ- सौ सर
लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,
द्वेष, परिग्रह, लालच,
राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर
रहे बजबजा इनके भीतर
फिर भी जरा नहीं शर्माए .
कलियुग की कैसी माया देखो
रावण, रावण को आग लगाये .
पंडित था रावण ,
था, अति बलशाली ,
धर्महीन हैं ये, हृदयहीन ,
विवेकशून्य , मर्यादा से खाली.
आचरण हो जिनका राम सा
जनता जिनके राज्य में
भयमुक्त हो, फूले नहीं समाये.
उन्हें ही हक है, आगे आकर
रावण को आग लगाये .
... नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आप सभी आदरणीय महानुभावों का हार्दिक अभाव..
मेरा लैपटॉप ख़राब होने के कारण मैं समय पर उपस्थित नहीं हो सका क्षमाप्रार्थी हूँ
सार्थक प्रस्तुति आ० नीरज कुमार जी
हार्दिक बधाई
आज के रावण के तो दस नहीं बीस सर हैं ढूंढो तो और भी मिल जायेंगे ,वो भी रावन को जलाकर अपने को विजयी मानते हैं
आचरण हो जिनका राम सा
जनता जिनके राज्य में
भयमुक्त हो, फूले नहीं समाये.
उन्हें ही हक है, आगे आकर
रावण को आग लगाये .------रचना में बहुत सुन्दर सन्देश दिया है ,इनको रचना की बहुमूल्य पंक्तियाँ कहूँगी ,बहुत बढ़िया बधाई आपको
अच्छी रचना है आपकी! इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
भाई जी यदि आप चाहते तो रचना और अच्छी हो सकती थी!
बहुत ही सटीक प्रस्तुति है आदरणीय नीरज भाई...... सचमुच ही राम का तो अभाव ही है ...... आज तो रावण ही रावण को जला रहा है..... बधाई सत्यता व्यक्त करती इस कृति के लिए....
दशानन था रावण
इनके हैं सौ- सौ सर
लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,
द्वेष, परिग्रह, लालच,
राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर
रहे बजबजा इनके भीतर
फिर भी जरा नहीं शर्माए .
अत्यंत सटीक बात, सही सन्देश देती रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी
बिलकुल सही कहा है आपने ..रचना में निहित सन्देश सब तक पहुचे ये जरूरी है ..हार्दिक बधाई के साथ
भाई नीर जी, कथ्य अत्यन्त शानदार है..... काव्यात्मकता एवं लयात्मकता का अभाव प्रतीत होता है, ऐसा मैं सोचता हूँ ....
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