For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम

बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ

वज्न : 2122, 2122, 212

........................................

सभ्यता सम्मान अपनापन गया,

आदमी शैतान जबसे बन गया,

भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,

ज्ञान गुण आदर कि अनुशासन गया,

रोग से हो ग्रस्त विचलित भूख से,

मौत के काँधे पे चढ़ निर्धन गया,

आसमां की चाह जबसे हो गई,

चैन का हाथो से छुट दामन गया,

परवरिश का जबसे बदला ढंग है,

खिलखिलाता फूल सा बचपन गया,

बाप को बेटा नसीहत दे कहे,

मैं हुआ बालिग जहाँ शासन गया,

सौ बरस की उम्र होती थी कभी,

आजकल तो साठ में जीवन गया,

देश की तस्वीर बदली इस कदर,

जुर्म का सीना उभर के तन गया..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on October 14, 2013 at 10:30pm

परवरिश का जबसे बदला ढंग है,

खिलखिलाता फूल सा बचपन गया,

 

देश की तस्वीर बदली इस कदर,

जुर्म का सीना उभर के तन गया.. वाह बहुत ही बढ़िया .. हार्दिक बधाई आपको

 

 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 9:41pm

आसमां की चाह जबसे हो गई,

चैन का हाथो से छुट दामन गया,

परवरिश का जबसे बदला ढंग है,

खिलखिलाता फूल सा बचपन गया,

 .आदरणीय अरुण जी बेहतरीन इस ग़ज़ल के ये दो अशार मुझे एक नयी ताजगी से भरे लगे ..इस बेहतरीन ग़ज़ल पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2013 at 8:36pm

आसमां की चाह जबसे हो गई,

चैन का हाथो से छुट दामन गया,.......वाह! बहुत खूब  सटीक बात
सौ बरस की उम्र होती थी कभी,

आजकल तो साठ में जीवन गया,.......क्या कहने, शानदार

बहुत शानदार गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अरुण अनंत जी

Comment by Abhinav Arun on October 14, 2013 at 7:16pm

देश की तस्वीर बदली इस कदर,

जुर्म का सीना उभर के तन गया..

              ..एक शानदार सम्पूर्ण ग़ज़ल अरुण जी हार्दिक बधाई आपको !

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 6:11pm

परवरिश का जबसे बदला ढंग है,

खिलखिलाता फूल सा बचपन गया, 

इस कांनवेंन्टी संस्कृति ने बच्चों से बचपना छीन लिया है , और बड़ा होकर वही शैतान बन रहा है।  बधाई अरुण शर्माजी कटु  सत्य  के लिए ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 14, 2013 at 4:26pm

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी ग़ज़ल आपको पसंद आई लेखन कार्य सार्थक हुआ, स्नेह यूँ ही बना रहे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 14, 2013 at 3:07pm

आदरणीय अरुन अनंत भाई , देश की वर्तमान , सांकृतिक , आर्थिक , सामजिक सभी स्थितियों समेटी हुई आपने बहुत सुन्दर गज़ल कही है !!! हर शेर लाजवब हैं !!!! दिली दाद कुबूल करें !!!

आसमां की चाह जबसे हो गई,

चैन का हाथो से छुट दामन गया,

देश की तस्वीर बदली इस कदर,
जुर्म का सीना उभर के तन गया ----------- अलग से ढेरों दाद !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service