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ग़ज़ल : बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,

बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,

फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,

हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,

भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 9:12pm

वाह वाह अरुन भाई..... कितनी सुंदर गज़ल कही है आपने...... हर मिसरा बहुत ही लाजवाब...... बधाई हो....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 9, 2013 at 8:32pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , बहुत सुन्दर छोटी बह्र मे ग़ज़ल कही आपने , क़ाफिया भी बड़ा मज़ेदार लिया  है आपने !!!!!!!!!! आदरणीय बहुत बहुत बधाई !!!!!!!!!!!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 9, 2013 at 7:17pm

आप बहुत लकी है अरुन अनंत जी, देखिये केतवत लमहर वाह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आदरणीय कविराज जी ने दी है और पूछ भी लिया, क्या बात है !! साथ में बधाई भी । 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 9, 2013 at 7:02pm

           आदरणीय अरुण शर्मा जी इतनी अच्छी गजल के लिए अनेकों बधाई । " मिले जो इनमे कडवाहट , नहीं मिलती करेले में "। वाह !!! कडवाहट का इससे बढ़िया मिसाल हो ही नहीं सकता । 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 9, 2013 at 6:53pm

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या बात है,,,बधाई,,,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 9, 2013 at 6:52pm

बड़ा अनोखा प्रयास है भाई अरूण जी
//अजब इन्सान है देखो,
फँसा रहता झमेले में// ये भी खूब कही, वाह

कृपया ध्यान दे...

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