अपनी निगाहों से मेरा हर अक्श मिटाने चला है वो
दिल से अपने अब मेरा हर नक्श मिटाने चला है वो
मेरी महफ़िल की रंगीनियत कम होने लगी शायद
इसलिए साथ गैरों के महफिलें सजाने चला है वो
उस शख्स की शख्सियत भी क्या होगी यारो
मोहब्बत से भरा एक शख्स मिटाने चला है वो
जिसने खुद ही जलाई थी मोहब्बत की शमा कभी
उस शमा की आखिरी लौ भी अब बुझाने चला है वो
और जिनकी रग-रग मैं हैं धोखे और फरेब भरे
साथ उनके अब यारियों निभाने चला है वो
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भाई जीतेन्द्र जीत जी रचना आपने पसंद की इसके लिया आपका हार्दिक शुक्रिया !
आपका तहे दिल से शुक्रिया कुंती मुखर्जी जी .......
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी.... रचना आपको अच्छी लगी और आपने अपने बहुमूल्य विचार दिए उसके लिए हार्दिक आपका !
सादर नमस्कार वीनस जी .... रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ... !
महिमा जी आपका हार्दिक आभार ... रचना के प्रशंशा के लिए !
आदरणीय गिरिराज जी ..... हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आपका !
भाई सुशील जोशी जी आपका हार्दिक आभार..... प्रोत्साहन के लिए !
आपकी बधाई सर आँखों पर अनुराग जी ....रचना से आप जुड़े इसके लिए हार्दिक आभार आपका .... आपकी दुखती रग को आराम मिले यही कामना आपके लिए ...... !
आदरणीया मीना पाठक जी.... आपका हार्दिक आभार प्रोत्साहन के लिए ....!
बहुत सुंदर रचना, बधाई आदरणीय सचिन जी
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