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सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले

1 2 2 2  1 2 2 2  1 2 2 2  1 2 2  2

चढा दी हसरतें सूली किसी ईनाम से पहले//
नमन है उन शहीदों को सदा आवाम से पहले//


बने आजाद परवाने कफ़न को सिर पे बांधा था
वतन पर जान देते थे किसी अंजाम से पहले //


भुला सकते न कुर्बानी वतन पर मर मिटे हैं जो
ज़माना सर झुकाएगा खुदा के नाम से पहले//

शहादत व्यर्थ उनकी यूँ नहीं अब तुम करा देना
नसीहत मानना उनकी किसी कुहराम से पहले//


वफ़ा कैसे निभानी सीखलो अपने वतन से तुम
सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले //

सनम जो देश को समझो तभी नजरे इनायत हो
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले //

           .....................................
................मौलिक व अप्रकाशित...............

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Comment by Sarita Bhatia on October 4, 2013 at 5:08pm

आदरणीय आशुतोष जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on October 4, 2013 at 5:07pm

अरुण शुक्रिया , आपके अनुसार गजल में कुछ सुधार किया है,आशा है आगे भी मार्गदर्शन बना रहेगा  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 4, 2013 at 4:36pm

आदरनीया सरिता जी ...इस सुंदर ग़ज़ल का ये शेर मुझे बेहद भाया..सादर बधाई के साथ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 4, 2013 at 3:51pm

आदरणीया सरिता जी ग़ज़ल पर आपका प्रयास बहुत ही बढ़िया है सभी अशआर पसंद आये, कुछ अशआरों पर मैं अपने विचार रख रहा हूँ कृपया अन्यथा ने लें.

चढा दी हसरतें सूली किसी ईनाम से पहले//
नमन है उन शहीदों को सभी आवाम से पहले// ( सभी को सदा कर दें तो कैसा रहेगा)

भुला सकते न कुर्बानी वतन पर मर मिटे हैं जो
ज़माना सर झुकाएगा विधाता नाम से पहले// ( विधाता की जगह अगर खुदाके नाम पहले हो तब)

शहादत व्यर्थ यूँ उनकी नहीं अब हो सके ऐसे
नसीहत मानना उनकी किसी/सरे मुकाम से पहले// .. इसमें तदाबुले रदीफ़ का दोष है साथ ही साथ शे'र बेबहर भी है.

बाकी सभी अशआर बहुत ही सुन्दर हैं मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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