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जीवन में पहली बार कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास किया है. आप सबका मार्गदर्शन प्रार्थनीय है.

अम्बे तेरी वंदना, करता हूँ दिन-रात

मिल जाए मुझको जगह, चरणों में हे मात

चरणों में हे मात, सदा तेरे गुण गाऊँ

चरण-कमल-रज मात, नित्य ही शीश लगाऊँ

अर्पित हैं मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे

शब्दों को दो अर्थ, मात मेरी हे अम्बे

.

- बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:49am

आदरणीय सुरेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 2, 2013 at 11:33pm

प्रिय नीरज भाई बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ ...अच्छा प्रयास ..जय माँ अम्बे
आभार
भ्रमर ५

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 11:23pm

आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2013 at 11:03pm

आ0 बृजेश भार्इ जी, अति सुन्दर कुण्डलियां। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 9:50pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:44pm

सुंदर छंद आदरणीय बृजेश जी.... नवरात्रि उत्सव प्रारंभ होने से ठीक पहले माँ अम्बे की इस वंदना पर बधाई स्वीकारें....

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 9:31pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 9:30pm

आदरणीय नीरज भाई , सुन्दर कुन्डलिया की रचना के लिये आपको बधाई !!

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 9:04pm

 आदरणीय रविकर जी, आपका हार्दिक आभार!

वास्तव में चौथी पंक्ति की इस कमी की ओर मेरा ध्यान ही नहीं गया. इसे सही करने का प्रयास करता हूँ.

सादर!

Comment by रविकर on October 2, 2013 at 5:59pm

बधाई आदरणीय बृजेश जी-
बहुत बढ़िया प्रयास-
चौथी पंक्ति में कुछ नए भाव शामिल किये जा सकते हैं-

कृपया ध्यान दे...

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