For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्म-मन्थन

कभी-कभी इन दिनों

आत्म-मन्थन करती

जीवन के तथ्यों को तोलती

मेरी हँसती मनोरम खूबसूरत ज़िन्दगी

जाने किस-किस सोच से घायल

कष्ट-ग्रस्त

‘अचानक’ बैठी उदास हो जाती है

 

लौट आते हैं उस असामान्य पल में

कितने टूटे पुराने बिखरे हुए सपने

भय और शंका और आतंक के कटु-भाव

रौंद देते हैं मेरा ज्ञानानुभाव स्वभाव

और उस कुहरीले पल का धुँधलापन ओढ़े

अपने मूल्यों को मिट्टी के पहाड़-सा गिरता देख

उसी मिट्टी में धंस जाता हूँ

छ्टपटाता हूँ

जितनी अधिक ऊँचाई थी मूल्यों की

उतना अधिक भार ढोता हूँ अपने पर

उस समय पास कोई रेश्मी आँचल नहीं

मद्धम-सी रोशनी का कोई सुराख़ भी नहीं

मेरे ही प्रिय सिधांत

टूट-टूट पड़ते हैं मुझ पर

क्यूँ ? .. आख़िर क्यूँ ? ...

 

इसलिए कि मैंने उस समय

भय और शंका और आतंक के कटु-भाव को

अनुशासन के प्रबल पर्वत-प्रतीकों से नहीं रोका ?

पर मुझको तो था विन्यस्त विश्वास

है आत्मा ही परमात्मा

सुख-शान्ति प्राधान्य है

वह न जन्मती है, न मरती है

फिर क्यूँ लगता है आज

किसी के अप्रत्याशित प्रहार से खंडित

जीवन के अति सूक्षम तथ्यों के बीच

टूट रही है, हार रही है आत्मा ?

-------

- विजय निकोर

९-२९-१३

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 733

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 2, 2013 at 9:33am

पाठक को भी चिंतनोन्मुख करता सशक्त चिंतन...

सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी...

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 6:52am

बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 10:59pm

आदरणीय विजय निकोर सर जवाब नहीं प्रस्तुति का बहुत ही सुन्दर अति सुन्दर हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 1, 2013 at 9:58pm

आदरणीय बडे भाई विजय जी , बहुत ही सुन्दर चिंतन !! वाह वाह !!

इसलिए कि मैंने उस समय

भय और शंका और आतंक के कटु-भाव को

अनुशासन के प्रबल पर्वत-प्रतीकों से नहीं रोका ?

पर मुझको तो था विन्यस्त विश्वास

है आत्मा ही परमात्मा

सुख-शान्ति प्राधान्य है

वह न जन्मती है, न मरती है

फिर क्यूँ लगता है आज

किसी के अप्रत्याशित प्रहार से खंडित

जीवन के अति सूक्षम तथ्यों के बीच

टूट रही है, हार रही है आत्मा ? --------------------------- वाह !!!!!!

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 7:32pm

आत्म मंथन का सारा रस निचोड़ लिया आपने वाह ! बहुत सुन्दर रचना आदरणीय विजय निकोर जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 1, 2013 at 5:40pm

आतंक अनाचार के आगे  हर कोई पस्त लगता है।  मुझे तो पूरा भारत ही भय से ग्रस्त लगता है ॥

आपकी पीड़ा हम सब की पीड़ा है । पूरी व्यवस्था बदलनी होगी , तभी आशा की किरण दिखाई देगी ।  

बधाई विजय भाई अपनी पीड़ा के बहाने  सब की आत्मा  को जगाने के लिए। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
15 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service