For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्रे रमल मुसम्मन महज़ूफ़

================
2122/ 2122/ 2122/ 212

हैं परे सिद्धांत से, आचार की बातें करें;
भोथरे जिनके सिरे हैं, धार की बातें करें;।।1।।


मछलियाँ तालाब की हैं, क्या पता सागर कहाँ?
पाठ जिनका है अधूरा, सार की बातें करें;।।2।।


उँगलियाँ थकने लगीं हैं, गिनतियाँ बढ़ने लगीं,
जब जहाँ मिल जाएँ, बस दो-चार की बातें करें;।।3।।


इन पे यूँ अपनी तिजारत का जुनूं तारी हुआ,
लाश के ऊपर खड़े व्यापार की बातें करें;।।4।।


हर धरोहर मिट रही है, ख़ाक हो, उनकी बला,
वे हड़प कर कोष, जीर्णोद्धार की बातें करें;।।5।।


तर न पाओगे ये वैतरणी हमारे बिन कभी,
ख़ुद फँसे मझधार में जो, पार की बातें करें;।।6।।


वक़्त दे कर गुमशुदा हैं, शान इनकी है यही,
जब ज़बां खोलें वही बेकार की बातें करें;।।7।।


दस बरस में चीथड़ों में आ गया भारत मेरा,
ग़र्क़ बेड़ा कर दिया, उद्धार की बातें करें;।।8।।


उफ़ जहालत की ये हद है,बे-ख़बर ऐसे हुए,
है सुई इक हाथ में, तलवार की बातें करें;।।9।।


ज्ञानियों की पूछ हो पर मूढ़ को भूलें नहीं,
वे भी अक्सर मूर्खता में भार की बातें करें;।।10।।


दोस्ती जब खुल के की तो दुश्मनी से डर हो क्यूँ,
हम न कायर पीठ पर जो वार की बातें करें;।।11।।

------------------------

  • वाहिद काशीवासी {20092013}

------------------------
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 685

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 3, 2013 at 7:17pm

आदरणीय Saurabh  जी

आपका अनुमोदन सदैव ही प्रोत्साहित करने वाला होता है ।आपकी शिक़ायत अपनी जगह जाइज़ है किन्तु मेरी भी विवशताएँ हैं। विगत कुछ समय से समय के चक्र ने ऐसे उलझा रखा है कि मैं चाह कर भी अपने मन की नहीं कर पा रहा हूँ। एक बार सबकुछ पुनः पटरी पर आ जाने दीजिए, आप लोगों को शिक़ायत का मौक़ा नहीं दूंगा। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 3:17am

वाह भाई जी वाह !
आपका नया तेवर और नया अंदाज़ देख रहा हूँ. सीधी-सच्ची बात बिना किसी लपेट के. फिर भी बड़ी ग़ज़ल कह गये. बहुत-बहुत दाद कुबूल करें.

संदीप वाहिदजी, आपसे एक शिकायत है हमारी. रहते-रहते कहाँ अलोत हो जाते हैं ? हम आपको क़ायदे से यहीं सुनना पसंद करते हैं.
शुभकामनाएँ

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 1, 2013 at 7:52pm

ग़ज़ल को अपनी कृपादृष्टि से नवाज़ने और सारगर्भित टिप्पणियों हेतु आप सभी सुधिजनों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 3:25pm

सुन्दर ग़ज़ल आ० संदीप द्विवेदी जी 

सभी अशआर बढ़िया है , पर यह दो शेर ख़ास पसंद आये 

मछलियाँ तालाब की हैं, क्या पता सागर कहाँ?
पाठ जिनका है अधूरा, सार की बातें करें..

तर न पाओगे ये वैतरणी हमारे बिन कभी,
ख़ुद फँसे मझधार में जो, पार की बातें करें

शुभकामनाएं 

Comment by विजय मिश्र on October 1, 2013 at 12:52pm
बेहतरीन , हकीकत और सियासत से रू ब रु कहीं दिल को खरोंचती बढती है और ज्यूँ ज्यूँ आगे बढती है उसी घाव को और गहरा करती है .मेहरबानी आपकी कि यह खूबसूरत गज़ल हमें मयस्सर हुआ .संदीपजी ,तहेदिल से शुक्रिया
"ज्ञानियों की पूछ हो पर मूढ़ को भूलें नहीं,
वे भी अक्सर मूर्खता में भार की बातें करें;। --- कितनी सही समझ और सोंच , सार्थक रचना .
Comment by अरुन 'अनन्त' on October 1, 2013 at 11:07am

वाह भाई वाह कामयाब ग़ज़ल सभी के सभी अशआर दिल को छू गए भाई क्या कहने जबरदस्त ग़ज़ल कही है अपने दिली दाद कुबूल करें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 9:36am

बेहतरीन गजल ,बधाई स्वीकारें आदरणीय संदीप जी

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2013 at 9:03pm

इन पे यूँ अपनी तिजारत का जुनूं तारी हुआ,
लाश के ऊपर खड़े व्यापार की बातें करें;।।4।।


हर धरोहर मिट रही है, ख़ाक हो, उनकी बला,
वे हड़प कर कोष, जीर्णोद्धार की बातें करें;  आदरणीय वाहिद जी बहुत दिनों के बाद आपकी गज़ल पढने को मिली .....बेहद उम्दा .. समसामयिक जानदार प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें  

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 7:22pm

बेहतरीन गज़ल //////////वाह भाई वाह एक एक शेर लाजवाब //बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Meena Pathak on September 30, 2013 at 6:57pm

बेहतरीन गज़ल .... हार्दिक बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service