For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमको देखे

बरसों बीते

सूखे फूल

किताबों में

अहिवाती बस

एक छुअन ही

रही महकती

हाथों में

मन के कोरे

काग़ज भी तो

क्षत को गिरे

प्रपातों में

अनगिन पारिजात

मगर तुम

रख गए

कलम-दावातों में

आओ ना

इस इंद्रधनुष पर

दो पल बैठें

बात करें

शावक जैसी

कोमल राते

उतर रही

आहातों में

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 685

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on October 3, 2013 at 2:38pm

जी आदरणीय, सही कहा आपने खतरे की घंटी तो है ही, महसूस भी कर रहा हूं, पर मनवां है कि एक चीज सही करते-करते कहीं और उलझ जाता है, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 2:32pm

//मैंने इसे टंकित करने के समय पढ़ा भी था पर शायद सुधार कहीं और कर बैठा ।//

खतरे की तब घण्टी समझिये बजने लगी है..  हा हा हा हा...............  ;-)))))

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on October 3, 2013 at 2:12pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय, टंकण त्रुटियां जो आपने बताई हैं वो सचमुच हैं और मैंने इसे टंकित करने के समय पढ़ा भी था पर शायद सुधार कहीं और कर बैठा । सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 27, 2013 at 11:29pm

अहिवाती बस

एक छुअन ही

रही महकती

हाथों में................  और.. हम यहीं रह गये..वाह वाह

बेखयाली में मन के मुग्धाने का सुन्दर इशारा हुआ है, आदरणीय.

अलबत्ता कुछ टंकण  त्रुटियाँ पता नहीं क्यों पकड़ में नहीं आयीं अन्यान्य विद्वानों को. जैसे,

मन के कोरे

काग़ज भी तो

क्षत को गिरे.....    हो होना क्या उचित न होगा ?

प्रपातों में

अनगिन पारिजात

मगर तुम

रख गए

कलम-दावातों में... .........दवात तो फिर दवात ही है साहब..

लेकिन हमेशा की तरह दिल जीत लिया आपने..

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 2:27pm

आदरणीय अरून शर्मा 'अनन्‍त' जी, आप भी भाव में बह गए, मैंने समझा आप पकड़ेंगें, इन लाइनों को देखिए '

आओ ना/इस इंद्रधनुष पर/दो पल बैठें/बात करें/शावक जैसी/कोमल राते/उतर रही/आहातों में

इंद्रधनुष दिन में निकलता है और वहां बैठकर शावक जैसी रातों को कैसे देख सकते हैं, यह विरोधाभास है, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 2:23pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 1:45pm

आदरणीय राजेश भाई , बहुत उम्दा रचना , सुन्दर भाव !! आपको बहुत बधाई !! 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 1:32pm

इस छोटी सी रचना पर अपनी उपस्थिति से मेरा मान बढ़ाने के लिए सबका आभार प्रकट करता हूं, सादर

Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:00pm
हृदय को स्पर्श करती रचना ... बधाई आदरणीय !!!
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 11:28am

वाह आदरणीय राजेश भाई बेहतरीन प्रवाहमयी प्रस्तुति लाजवाब पंक्तियाँ, बहुत बहुत सुन्दर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें भाई जी . 

आओ ना

इस इंद्रधनुष पर

दो पल बैठें

बात करें

शावक जैसी

कोमल राते

उतर रही

आहातों में ... वाह अद्भुत कितना सुन्दर बिम्ब खींचा है भाई आनंद आ गया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
23 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service