मन मे हो रही एक अग्नि प्रज्वलित
तपन जिसकी कर रही समूचे शरीर को विचलित
बह रही अनियत्रिंत भावनाये प्रचण
जल रहा मानो शरीर का खंड-खंड
अजब दौराहा है युवास्था और बालमन का
मानो अपने ही प्रतिबिम्ब से लड़ने सा
अनायास ही जो आया जिम्मेदारी का भार
अंचभित मन, अकल्पित स्थिति लाई रिश्तों मे दरार
एक सोच पर भार अनेको सोच का
एक आंकाक्षा पर भार अनेको मह्त्वकांक्षाओ का
एक सपने पर भार अनेको सपनो क
एक ही मन पर भार अनेको अपनो का
अग्नि की बढती लपटो से सब अधीर हो रहा
अपना ही अस्तित्व मानो विलीन हो रहा
डर यही कि इस अंधी दौड़ में
आगे बढने और श्रेष्ठ होने की हौड़ मे
कही फ़िसल न जाये यह नव सवार
पिछ्ड़ न जाये, न जाये अपने सपनो से हार
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