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रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत-

रहमत लाशों पर नहीं, रहम तलाशो व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ |


अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |


करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत |

रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत ||

 

मौलिक / अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 18, 2013 at 2:16pm

आदरणीय गुरुदेव ..आपकी हर रचना में शब्दों के साथ आपका खेलना देखते ही बनता है 

Comment by annapurna bajpai on September 18, 2013 at 1:58pm
आदरणीय रविकर जी गहन अर्थ समेटे हुए इस रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 18, 2013 at 10:45am

आदरणीय रविकर सर बहुत अच्छी बात कही है आपने इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई कुबूल करें 

कृपया ध्यान दे...

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