For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,

भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई शस्य से वंचित हुआ,
              (शस्य = अन्न)
क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,

सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1658

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on September 16, 2013 at 11:40pm
अरे! सारे कमेन्ट्स पढ़े बिना ही मैंने टिप्पणी कर दी। क्या हुआ जो आदरणीय सौरभ सर इतना नाराज हुए मैं समझ नहीं पाई,और आपने इतनी जल्दी मंच छोड़ने का निर्णय ले लिया,कैसे?
आदरणीय सौरभ सर की टिप्पणी तो हमेशा सुधारोन्मुख करती हुई होती ही है,और आपने स्वीकार भी किया है,तो फिर...
आहत करने वाली तो कोई बात नहीं दिखी जो बात यहां तक आ पहुंची।
मंच ज्वाइन करने लिए' स्वीकृति' ली थी न आपने,तो छोड़ ऐसे कैसे देंगे भाई?
आप दोनो से सादर निवेदन है कि आपस में बात करके सुलझालें,यदि कोई फितूर उत्पन्न हो गया हो...कृपया।
सादर
सादर
Comment by annapurna bajpai on September 16, 2013 at 11:39pm

आदरणीय  अरुण जी यों तो मै इस मंच पर आपकी गजल पर टिप्पणी के रूप मे प्रतिक्रिया दे चुकी हूँ , लेकिन चर्चा नीचे जिस बात पर हो रही है उसके देखते हुए मै आपसे आग्रह करती हूँ कि इस मंच को केवल इसलिए छोड़ कर जाना ठीक नहीं होगा । कई बार ऐसा होता है कि हमारे द्वारा किया गया कार्य हर्षातिरेक मे कुछ गड़बड़ हो जाता है और किसी बड़े के द्वारा समझाने पर हम उस काम को सुधार लेते है काम को करना बंद नहीं करते , न ही पलायन करते है । सादर ,

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 16, 2013 at 11:19pm

वाह, बहुत खूब ग़ज़ल कही है अरुण भाई |

Comment by Savitri Rathore on September 16, 2013 at 11:06pm

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,
सच में वर्तमान विसंगतियों को उकेरती सुन्दर रचना .........बधाई हो।

Comment by Vindu Babu on September 16, 2013 at 10:51pm
वाह आदरणीय अरुन जी बहुत अच्छे भावों को पिरोया है आपने,शिल्प के बारे मे ज्यादा कुछ मैं जानती नहीं।
रचना से आपके बढते दायित्व का दबाव भी झलक रहा है।
वास्तव में आज समाज की विसंगतियां हृदय पर बोझ सी बन गई हैं।
शुभ शुभ
सादर
Comment by Meena Pathak on September 16, 2013 at 10:33pm

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,
.......... सुन्दर ग़ज़ल, बधाई आप को

प्रिय अरुण जी

आप कहीं नहीं जा रहें हैं इस मंच को छोड़ कर ... मुझे ग़ज़ल के बारे में कोई ज्ञान नही है पर आप की ग़ज़ल दिल तक पहुँची है .. कोई बात है तो आप आपसी बातचीत से समस्या का समाधान कर सकते हैं पर इस मंच को छोड़ना ठीक नही

सादर
मीना

Comment by ram shiromani pathak on September 16, 2013 at 10:22pm

आदरणीय भाई अरुण शर्मा  जी,आपसे मेरा यही निवेदन है जल्दबाजी में कोई  निर्णय न लें// आपका ऐसा निर्णय सुनकर मुझे बहुत दुःख हो रहा है ///कृपा कर एक बार विचार विमर्श तो कर लें/सादर  

Comment by वेदिका on September 16, 2013 at 10:07pm

आदरणीय अरुण जी!

किसी भरम के चलते आप जल्दी मे ऐसा कुछ भी निर्णय नही लें| बात आपको जो भी कचोट गयी हो, आप विमर्श करके निपटा लें, और यहीं मंच पर रहें| ये मेरा निवेदन है हम सभी सदस्यों की ओर से!    

Comment by बृजेश नीरज on September 16, 2013 at 6:39pm

अरुण भाई, मेरा भी आग्रह है कि आप अतिरेक में इस तरह का निर्णय न लें. मंच बहुत महत्वपूर्ण है. मेरे हिसाब से तो संवाद में कहीं कुछ अंतराल रह गया, कुछ भ्रम उत्पन्न हुआ है, जिसके आप शिकार हो गए. मंच की गरिमा का मान हम सब सदस्यों से है इसलिए इसे बनाये रखना हम सबका दायित्व है.

आपसे अनुरोध है की आप चर्चा कर लें, जो गलतफहमियां हैं उन्हें दूर कर लें. मंच पर बने रहे.

ऐसे छोटी छोटी बातों पर मंच नहीं छोड़ा जाता मित्र.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 16, 2013 at 6:23pm

प्रिय अरुन जी ये सच है की आप बेहद संवेदन शील हैं किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जो आप मंच से विदा लेने की बात कर रहे हैं
आपकी कश्ती जरा सी हवा से ही डगमगा गई तो तूफानों को कैसे झेलेंगे बस इतना ही आत्म विशवास ,इतना ही प्रेम इस मंच से ?
ऐसी उम्मीद कभी नहीं की हमने आपसे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
2 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service