For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ अधखुले बीज....

कुलबुलाते कुछ अधखुले बीज

मेरे बरामदे के कोने में पड़े हैं

शायद माँ ने जब फटकारे

तो गिर गए होंगे

बारिश के होने से कुछ पानी और

नमी भी मिल गयी उन्हें

सफाई करते ध्यान भी नहीं दिया

बड़ी लापरवाह है कामवाली भी

दो दिन हुए हैं और बीजों ने

हाथ पैर फ़ैलाने शुरू कर दिए

हाँ ठीक भी तो है

मुफ्त में मिली सुविधा से

अवांछित तत्व फलते-फूलते ही हैं

पर अब जब वो यूँही रहे तो

बरामदे में अपनी जड़े जमा लेंगे

फिर ज़मीन में पड़ेंगी दरारे भी

मेरी माँ का खूबसूरत सा

बरामदा चटखने लगेगा

माँ को दुःख होगा...

क्यों न मैं ही इसे हटा दूँ अभी

इसकी बढ़ती टांगों से पहले

कल को ये घर में बदसूरती लाये

क्यों न मैं ही इसका वजूद मिटा दूँ

या इसे एक नयी ज़मी दूँ

जहाँ ये पनप सके.....जन्म ले सके

अभी ये नापसंद है माँ को

तब ये माँ का दुलार पा सके

एक हिस्सा बन जाये शायद

माँ के इस बरामदे का

खिली पत्तियाँ और रंगीन फूलों से

तब माँ को ख़ुशी होगी

और मुझे भी....

(मौलिक एव अप्रकाशित)

.......प्रियंका

Views: 815

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Priyanka singh on September 15, 2013 at 9:18pm

आदरणीय....जितेन्द्र जी पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया आपका .....

Comment by Priyanka singh on September 15, 2013 at 9:16pm

गीतिका जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका .....

Comment by Priyanka singh on September 15, 2013 at 9:14pm

आदरणीय...आशुतोष सर बहुत बहुत शुक्रिया आपका .....

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 8:37pm

बहुत अच्छा प्रयास है. आपको हार्दिक बधाई.

शिल्प थोडा और समय मांग रहा है. 

सादर!

Comment by Abhinav Arun on September 15, 2013 at 1:14pm

सुन्दर सच्चे भाव ..सृजन की काव्य वल्लरी की प्रस्तुति के लिए बधाई और शुभकामनायें प्रियंका जी !

Comment by Manav Mehta on September 15, 2013 at 11:52am
वाह... बहुत खूब... बेहद ही उम्दा।
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 11:40am

बहुत ही उत्तम विचार हैं आदरणीया प्रियंका जी अब ये कामवाली की लापरवाही कहें या ईश्वर की मर्जी जब वे हाँथ पैर फैला ही रहे हैं तो क्यूँ न हम उन्हें बड़ा भी होने दें. हार्दिक बधाई स्वीकारें इस सुन्दर प्रस्तुति पर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2013 at 10:16am

अच्छा वैचारिक मंथन हुआ है : इसके लिए बधाई आदरणीया प्रियंका जी

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 11:04pm

उत्तम विचारों से ओतप्रोत रचना , बधाई आपको ।

Comment by vijay nikore on September 14, 2013 at 7:17pm

आदरणीया प्रियंका जी:

 

बहुत ही अनोखी सोच है, और रचना में विचारधारा को अच्छा सकारात्मक मोड़ दिया है।

आपको हार्दिक बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service