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करें हम

मान अब इतना

सजा लें

माथ पर बिन्दी।

बहे फिर

लहर कुछ ऐसी

बढ़े इस

विश्व में हिन्दी।।

 

गंग सी

पुण्य यह धारा

यमुन सा

रंग हर गहरा

सुबह की

सुखद बेला सी

धरे है

रूप यह हिन्दी।।

 

मधुरता

शब्द आखर में

सरसता

भाव भाषण में

रसों की

धार छलके तो

करे मन

तृप्त यह हिन्दी।।

 

तोड़कर

बॅंध दासता के

सभी भ्रम

जाल भाषा के

बसा लें

प्रेम अब इसका

प्रथम हो

देश में हिन्दी।।

                - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 6:45pm

आदरणीया मीना जी बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 6:43pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 5:58pm

बहुत उम्दा रचना .. बधाई आप को आ० बृजेश जी

Comment by Vindu Babu on September 5, 2013 at 4:13pm
अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मानवर्धन आपकी यह रचना बड़ी ही मौलिक एवं हृदयस्पर्शी है।
अति सुन्दर!
धार झलके तो
करे मन
तृप्त यह हिंदी।
बहुत बधाई आपको इस सफल सम्प्रेषणीय रचना के लिए।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 3:28pm

आदरणीय बसंत नेमा जी आपका हार्दिक आभार! आपको मेरा प्रयास सार्थक लगा, यही मेरा पुरूस्कार है।
सादर!

Comment by बसंत नेमा on September 5, 2013 at 3:02pm

तोड़कर

बॅंध दासता के

सभी भ्रम

जाल भाषा के

बसा लें

प्रेम अब इसका

प्रथम हो

देश में हिन्दी।।

अपने ही घर मे बेगानी हो गई हिन्दी ......इसे सब की जुबान पे लाने का बहुत सुन्दर प्रयास ..रचना के लिये बहुत बहुत बधाई शुभकामनाये आ0 बृजेश जी...

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 2:07pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 2:06pm

आदरणीय रविकर जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 2:05pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by annapurna bajpai on September 5, 2013 at 12:41pm

आ० बृजेश जी हिन्दी पर लिखी सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।  

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