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कई साल बाद लौटा
बहुत कुछ बदला लगा
विकास ही विकास
कस्बा अब शहर हो चुका है

अरे ये क्या ?
जहाँ पेड़ों का एक झुण्ड था
वहाँ बड़ी बड़ी इमारतें
सीना ताने खड़ीं है
मृत पेड़ों की देह पर
ठहाके मारती

कोई दुःख नहीं 
पेड़ों की
अकाल मृत्यु पर 

विकास रुपी राक्षस को बलि देकर

खुश थे लोग

******************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 706

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 11:32am

बहुत बहुत आभार आदरणीय रमेश कुमार जी //सादर  

Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 11:31am

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी //सादर  

Comment by रविकर on September 5, 2013 at 9:47am

एक और बढ़िया प्रस्तुति -
बधाई प्रियवर-

Comment by Abhinav Arun on September 5, 2013 at 9:24am

कोई दुःख नहीं
पेड़ों की
अकाल मृत्यु पर

विकास रुपी राक्षस को बलि देकर

खुश थे लोग

..........दौरे हाज़िर की हकीकत को बयान करती मर्मस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक साधुवाद श्री पाठक जी !!

Comment by vandana on September 5, 2013 at 7:31am

बहुत गहरी सोच 

पेड़ों की 
अकाल मृत्यु पर 

विकास रुपी राक्षस को बलि देकर

खुश थे लोग...

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 4, 2013 at 11:24pm

कोई दुःख नहीं 
पेड़ों की 
अकाल मृत्यु पर 

विकास रुपी राक्षस को बलि देकर

खुश थे लोग

बहुत सुन्दर चित्रण ...उनका दर्द प्रस्फुटित हुआ ..प्रकृति की अवहेलना ही हो रही है शिरोमणि जी ...जागो लोगों जागो
बधाई
भ्रमर ५

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 11:20pm

कोई दुःख नहीं  पेड़ों की अकाल मृत्यु पर 

विकास रुपी राक्षस को बलि देकर

खुश थे लोग !..... बहुत सुन्दर .. बधाई

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 10:08pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी पर्यावरण को लक्ष्य कर कही आपकी रचना बहुत सुंदर है सुंदर भाव । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 4, 2013 at 10:07pm

राम शिरोमणी भाई , सुन्दर रचना , प्रकृति के विनाश की कीमत मे हो रहे विकास पर !! बधाई !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 4, 2013 at 9:32pm

बहुत बढिया दीपकजी

कृपया ध्यान दे...

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