रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया,
औरों को खुशियाँ देने को, छुप-छुप के रोना सीख लिया।
ताने उलाहने सुन कर हम बने रहे हर बार अंजान,
वो यूं ही सताते रहे हमे समझा न कभी हमे इंसान।
मेरी आंखो के सागर का बूंद-बूंद तक लूट लिया और,
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।
मेरे मन की गहराई मे अब उलझनों का घेरा हैं
हर रात बीते रुसवाई मे, बेबस हर सवेरा है।
मौसम की कड़ी तपन मे घावों को सीना सीख लिया और
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।
ठोकर खाकर देखा चारो तरफ हैं स्वार्थ की धुंध,
खामोशी से सहकर सबकुछ आंखे अपनी करली बंद,
मेरा ही मन जाने है क्या-क्या मुझपर बीत गया और
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।
- वसुधा निगम
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरा ही मन जाने है क्या-क्या मुझपर बीत गया और
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। -------वाह वाह वसुधा निगम जी आज के हालात से जूझती नारी की हृदय व्यथा को बहुत सुन्दरता से उकेरा है रचना में बहुत बहुत बधाई
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ..... |
आदरणीय बागी जी, राम शिरोमणि जी, अन्नपूर्णा जी एवं मीना जी
आप सभी का हार्दिक आभार, इस मंच से ही प्रेरणा मिलती है।
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। ..... बहुत सुंदर प्रस्तुति .... हार्दिक बधाई
जीवन की आपाधापी में रिश्तों का मर्यादा कहाँ भूलने लगता है पता ही नहीं चलता, बहुत ही सुन्दर भाव व्यक्त हुआ है, बधाई आदरणीया वसुधा निगम जी ।
adarniya vasudha ji sundar rachna hetu badhai swikaren .
बहुत सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई आपको आदरणीया
आपकी रचना पढ़कर कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं मुझे
तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें हमने वो शीशा तोड़ दिया,
हँस हँस के जीना सीख लिया घुट घुट के मरना छोड़ दिया।
फ़िल्म 'संघर्ष' से आशा जी का गाया "तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें हमने वो शीशा तोड़ दिया तोड़ दिया तोड़ दिया, हँस हँस के जीना सीख लिया घुट घुट के मरना छोड़ दिया छोड़ दिया छोड़ दिया"। शक़ील बदायूनी का गीत है और नौशाद साहब की तर्ज़।
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