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घुट-घुट के जीना सीख लिया

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया,

औरों को खुशियाँ देने को, छुप-छुप के रोना सीख लिया।

 

ताने उलाहने सुन कर हम बने रहे हर बार अंजान,

वो यूं ही सताते रहे हमे समझा न कभी हमे इंसान।

मेरी आंखो के सागर का बूंद-बूंद तक लूट लिया और,

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।

 

मेरे मन की गहराई मे अब उलझनों का घेरा हैं

हर रात बीते रुसवाई मे, बेबस हर सवेरा है।

मौसम की कड़ी तपन मे घावों को सीना सीख लिया और

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया।

 

ठोकर खाकर देखा चारो तरफ हैं स्वार्थ की धुंध,

खामोशी से सहकर सबकुछ आंखे अपनी करली बंद,

मेरा ही मन जाने है क्या-क्या मुझपर बीत गया और

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। 

- वसुधा निगम 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2013 at 10:29am

मेरा ही मन जाने है क्या-क्या मुझपर बीत गया और
रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। -------वाह वाह वसुधा निगम जी आज के हालात से जूझती नारी की हृदय व्यथा को बहुत सुन्दरता से उकेरा है रचना में बहुत बहुत बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on September 4, 2013 at 10:09am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.....
Comment by Vasudha Nigam on September 4, 2013 at 9:42am

आदरणीय बागी जी, राम शिरोमणि जी, अन्नपूर्णा जी एवं मीना जी

आप सभी का हार्दिक आभार, इस मंच से ही प्रेरणा मिलती है। 

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:55am

रिश्तों की मर्यादा में हमने घुट-घुट के जीना सीख लिया। ..... बहुत सुंदर प्रस्तुति  .... हार्दिक बधाई


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2013 at 8:45am

जीवन की आपाधापी में रिश्तों का मर्यादा कहाँ  भूलने लगता है पता ही नहीं चलता, बहुत ही सुन्दर भाव व्यक्त हुआ है, बधाई आदरणीया वसुधा निगम जी । 

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 12:31am

adarniya vasudha ji  sundar rachna hetu badhai swikaren .

Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 10:12pm

बहुत सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई आपको आदरणीया

आपकी रचना पढ़कर कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं मुझे

तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें हमने वो शीशा तोड़ दिया,
हँस हँस के जीना सीख लिया घुट घुट के मरना छोड़ दिया। 

 फ़िल्म 'संघर्ष' से आशा जी का गाया "तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें हमने वो शीशा तोड़ दिया तोड़ दिया तोड़ दिया, हँस हँस के जीना सीख लिया घुट घुट के मरना छोड़ दिया छोड़ दिया छोड़ दिया"। शक़ील बदायूनी का गीत है और नौशाद साहब की तर्ज़।

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