For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


सुहानी सुबह में
खिली थी नन्ही कली
बगिया गुलजार थी

मेरी मौजूदगी से
आने जाने वाले
रोक न पाते खुद को
नाजुक थी कोमल थी
महका करती थी
माली ने सींचा था
खून पसीने से
देखा था सपना
सजोगी कभी आराध्य पर
कभी शहीदों के सीने पर
फूल भी गौरवान्वित थी
अपनी इस कली पर
कर रही थी रक्षा कांटे भी
पते ढक कर सुलाती थी
कली तो अभी कली थी
उसने खुद के लिए कुछ
सोचा भी नहीं था
लापरवाह थी भविष्य से
न देखी थी दुनिया
बस सुन रखी थी
आस पास के फूलों से
मानव अब चाँद पर जा
धरती को स्वर्ग बना
दुनिया की दूरियाँ सिमटा
आसमान में फूल खिलायेगे
बिना दुनिया देखे
दूसरों की बातों को सुन
विस्वास और उम्मीद से लबरेज
कभी इस डाल से कभी उस डाल तक
हवा के झोंके के साथ
खुद को फूल होने के इंतजार में
ख़ुशी से गर्व में इतराकर इठलाकर
चहकती महकती निहारना चाहती
इंतजार में सावन का
वारिश के बूंदों का
सराबोर कर लुंगी खुद को
पत्ते पर जो बुँदे ठहरेगी
निहारूंगी अपनी अक्श
देखेगी दुनिया मेरी
रूप रंग श्रिंगार
मदहोश होंगे मेरी खुशबू से
सोच में थी मदमस्त
तभी सूरज हुआ अस्त
तेज तूफान का झोंका आया
मुझे मसलकर उड़ा कर ,
उठा कर ले गया अपने संग
सारे सपने हुए भंग
खिलने से पहले
माली भी रोया देखकर
रह न पाई सुरक्षित
अपने घर में ,आँगन में
हे भगवान ,
फूल को सुन्दर कुछ कम बनाओ
पर पंखुड़ियों में कांटे कुछ और लगाओ

शुभ्रा शर्मा 'शुभ '

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shubhra sharma on August 31, 2013 at 6:15pm

आदरणीय श्याम नारायण जी ,उत्साहवर्धन हेतु सस्नेह धन्यवाद 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 4:33pm

अथाह गहरे व् सुंदर भाव हैं रचना में, बहुत बहुत बधाई आदरणीया शुभ्रा जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 2:52pm

प्रिय शुभ्रा जी 

बहुत सुन्दर भावों को एक ताजगी भरे तरीके से प्रस्तुत किया है ..इस हेतु शुभकामनाएँ स्वीकारें 

लेकिन 

कभी शहीदों के सीने पर 
फूल भी गौरवान्वित थी 
अपनी इस कली पर 
कर रही थी रक्षा कांटे भी 
पते ढक कर सुलाती थी   

चहकती महकती निहारना चाहती 
इंतजार में सावन का 
वारिश के बूंदों का 
सराबोर कर लुंगी खुद को 
पत्ते पर जो बुँदे ठहरेगी 
निहारूंगी अपनी अक्श .... ये संज्ञाओं के स्त्रीलिंग व पुल्लिंग प्रारूप पर एक नज़र डालें/ साथ ही एक वचन बहुवचन को भी देखें 

सुन्दर से सुन्दर अभिव्यक्ति भी आधारभूत व्याकरण को नजरअंदाज करने से अपनी छाप नहीं छोड़ पातीं ...विश्वास है आप इन बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी सुन्दर रचनाएँ प्रस्तुत कर पाठकों को लाभान्वित करेंगी.

सस्नेह शुभेच्छाएँ 

Comment by Shyam Narain Verma on August 31, 2013 at 1:17pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service