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कविता - आरजू


सुहानी सुबह में
खिली थी नन्ही कली
बगिया गुलजार थी

मेरी मौजूदगी से
आने जाने वाले
रोक न पाते खुद को
नाजुक थी कोमल थी
महका करती थी
माली ने सींचा था
खून पसीने से
देखा था सपना
सजोगी कभी आराध्य पर
कभी शहीदों के सीने पर
फूल भी गौरवान्वित थी
अपनी इस कली पर
कर रही थी रक्षा कांटे भी
पते ढक कर सुलाती थी
कली तो अभी कली थी
उसने खुद के लिए कुछ
सोचा भी नहीं था
लापरवाह थी भविष्य से
न देखी थी दुनिया
बस सुन रखी थी
आस पास के फूलों से
मानव अब चाँद पर जा
धरती को स्वर्ग बना
दुनिया की दूरियाँ सिमटा
आसमान में फूल खिलायेगे
बिना दुनिया देखे
दूसरों की बातों को सुन
विस्वास और उम्मीद से लबरेज
कभी इस डाल से कभी उस डाल तक
हवा के झोंके के साथ
खुद को फूल होने के इंतजार में
ख़ुशी से गर्व में इतराकर इठलाकर
चहकती महकती निहारना चाहती
इंतजार में सावन का
वारिश के बूंदों का
सराबोर कर लुंगी खुद को
पत्ते पर जो बुँदे ठहरेगी
निहारूंगी अपनी अक्श
देखेगी दुनिया मेरी
रूप रंग श्रिंगार
मदहोश होंगे मेरी खुशबू से
सोच में थी मदमस्त
तभी सूरज हुआ अस्त
तेज तूफान का झोंका आया
मुझे मसलकर उड़ा कर ,
उठा कर ले गया अपने संग
सारे सपने हुए भंग
खिलने से पहले
माली भी रोया देखकर
रह न पाई सुरक्षित
अपने घर में ,आँगन में
हे भगवान ,
फूल को सुन्दर कुछ कम बनाओ
पर पंखुड़ियों में कांटे कुछ और लगाओ

शुभ्रा शर्मा 'शुभ '

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by shubhra sharma on August 31, 2013 at 6:15pm

आदरणीय श्याम नारायण जी ,उत्साहवर्धन हेतु सस्नेह धन्यवाद 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 4:33pm

अथाह गहरे व् सुंदर भाव हैं रचना में, बहुत बहुत बधाई आदरणीया शुभ्रा जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 2:52pm

प्रिय शुभ्रा जी 

बहुत सुन्दर भावों को एक ताजगी भरे तरीके से प्रस्तुत किया है ..इस हेतु शुभकामनाएँ स्वीकारें 

लेकिन 

कभी शहीदों के सीने पर 
फूल भी गौरवान्वित थी 
अपनी इस कली पर 
कर रही थी रक्षा कांटे भी 
पते ढक कर सुलाती थी   

चहकती महकती निहारना चाहती 
इंतजार में सावन का 
वारिश के बूंदों का 
सराबोर कर लुंगी खुद को 
पत्ते पर जो बुँदे ठहरेगी 
निहारूंगी अपनी अक्श .... ये संज्ञाओं के स्त्रीलिंग व पुल्लिंग प्रारूप पर एक नज़र डालें/ साथ ही एक वचन बहुवचन को भी देखें 

सुन्दर से सुन्दर अभिव्यक्ति भी आधारभूत व्याकरण को नजरअंदाज करने से अपनी छाप नहीं छोड़ पातीं ...विश्वास है आप इन बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी सुन्दर रचनाएँ प्रस्तुत कर पाठकों को लाभान्वित करेंगी.

सस्नेह शुभेच्छाएँ 

Comment by Shyam Narain Verma on August 31, 2013 at 1:17pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

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