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ग़ज़ल : ध्यान रहे सबसे अच्छा अभिनेता है बाजार

बह्र : मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन मुस्तफ़्फैलुन फा

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छोटे छोटे घर जब हमसे लेता है बाजार

बनता बड़े मकानों का विक्रेता है बाजार

 

इसका रोना इसका गाना सब कुछ नकली है

ध्यान रहे सबसे अच्छा अभिनेता है बाजार

 

मुर्गी को देता कुछ दाने जिनके बदले में

सारे के सारे अंडे ले लेता है बाजार

 

कैसे भी हो इसको सिर्फ़ लाभ से मतलब है

जिसको चुनते पूँजीपति वो नेता है बाजार

 

खून पसीने से अर्जित पैसो के बदले में

सुविधाओं का जहर हमें दे देता है बाजार

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 7:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया Abhinav Arun जी, स्नेह लगातार बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 7:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया वीनस केसरी जी, इस कदर भी हौसला अफ़जाई न कीजिए कि गुरूर हो जाय :))))। स्नेह बना रहे। और हाँ आपकी बात नोट कर ली गई है अध्येता पर शे’र कहने की कोशिश जारी है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 7:04pm

बहुत बहुत धन्यवाद vijayashree जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 7:03pm

बहुत बहुत शुक्रिया  Dr Ashutosh Mishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 7:02pm

बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र 'गीत' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 7:02pm

बहुत बहुत शुक्रिया Shyam Narain Verma जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 5, 2013 at 7:02pm

बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी

Comment by Abhinav Arun on September 2, 2013 at 7:24am

बाज़ार व्यवस्था में सब कुछ तिरोहित हो रहा है ..सभ्यता ..इंसानियत ..रिश्ते ... नाते सबकुछ ...करार प्रहार करती ग़ज़ल ..आ .धर्मेन्द्र जी --

मुर्गी को देता कुछ दाने जिनके बदले में

सारे के सारे अंडे ले लेता है बाजार

 बहुत कुछ कहती और सोचने को विवश करती ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत साधुवाद !!

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 4:12am

धर्मेन्द्र भाई
मोबाईल में ओबीओ के मुखपृष्ठ पर इस पोस्ट का शीर्षक देख कर ही मैं ९९ % स्पष्ट था कि यह आपकी ग़ज़ल है

आपने अपनी ग़ज़लों के लिए एक अलग कहन विकसित कर ली है जो बहुत अच्छी बात है
आपकी ग़ज़लों में जो चमक है, जो नयापन है इसे अपना पाना ही किसी शाइर के स्थापित होने की निशानी है

जब किसी एक मिसरे से ही शाइर की पहचान स्पष्ट हो जाए तो इससे बड़ी बात और कोई नहीं हो सकती है
इस ग़ज़ल और आपकी लेखनी को सलाम

"अध्येता" काफ़िया पर भी शेर होना चाहिए :)))))))))))

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 1, 2013 at 11:49am

वर्तमान परिस्थिति का सुन्दर वर्णन आदरणीय शानदार ग़ज़ल लाजवाब अशआर ढेरों बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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