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दरख़्त

हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया , 

मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया |

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |

फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,

सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |

ये ग़ज़ल नहीं है यारों,   ये तलाश है उसी की,

जिसे आज तक है 'शेखर ', बस ख्वाब मे ही पाया |

मौलिक एवं अप्रकाशित 

अरविंद भटनागर ' शेखर'

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Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 4:02pm

आदरणीय अरविंद जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर सुन्दर बन पड़े हैं खास कर ये शेर अधिक पसंद आया, ग़ज़ल पर मेरी ओर बधाई स्वीकारें.

फुटपाथ पर सड़क के , कड़ी ठंड मे ठिठुर के ,

सोया जो रात में तो , रोटी का ख्वाब आया |

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 8:20pm

आ0 अरविन्द भाई जी,  सादर प्रणाम!   वाह! वाह!  बेहद सुन्दर गजल प्रस्तुति के लिए तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by mrs manjari pandey on August 25, 2013 at 2:05pm

हैं दरख़्त जाने कितने , पर कहीं नही है साया , 

मेरी ज़िंदगी में यारों , ये क्या मुकाम आया |        क्या बात है अरविन्द जी बहुत् मन्मोहक भीी भीनी गज़ल  . बधाई .

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 25, 2013 at 1:49pm

आप सभी को हौसला अफज़ाई का शुक्रिया | अभी OBO पर नया हूँ , इसके तौर तरीके सीखने की कोशिश कर रहा हूँ | आशा है जल्दी ही आप लोगो से OBO के द्वारा विचारों का आदान प्रदान करने लगूंगा | आप सभी को मेरी हार्दिक शुभ कामनाएँ|

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2013 at 1:31pm

बेहतरीन ,,

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |,,आपको जिसकी तलाश है उसने आपको तलाश लिया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on August 25, 2013 at 10:01am

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है। आपको हार्दिक बधाई! कृपया बहर का भी जिक्र किया करें जिससे पाठक को शिल्प समझने में आसानी होती है।

Comment by annapurna bajpai on August 24, 2013 at 11:01pm
आदरणीय अरविंद जी बहुत बढ़िया गजल के लिए बहुत बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 10:49pm

सुन्दर , मार्मिक गज़ल , अरविन्द भाई , बधाई !!

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |----------------- वाह क्या बात है !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 24, 2013 at 10:07pm

बस्ती वो मिट गई ओर कुछ भी ना कर सका मै ,

इस वक़्त के दरिया में ,इक  ऐसा तूफान आया |

सुंदर मार्मिक  पंक्ति शेखरजी आपके भाव एवं कलम को नमन

Comment by D P Mathur on August 24, 2013 at 8:03pm

वही हर्फो का तरन्नुम , वही खुश्बू भीनी भीनी,

मै तो लापता हूँ कब सेये खत कहाँ से आया |

क्या बात है शेखर जी आप तो छा गये, आपको बधाई!

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