शरीफों में शराफत नहीं
सिंह बकरी सा मिमियाए.
देख के, भारत माता का
आंचल भी शर्माए.
**********
दुष्ट कब समझा है जग में
निश्छल प्रेम की परिभाषा.
अपनी ही लाशों पर लिखोगे
क्या देश की अभिलाषा.
लाल पत्थर की दीवारें भी
महफूज़ नहीं रख पाएंगी .
सीमा पर बही रक्त जब
दिल्ली तक तीर आएगी .
सत्ता सुख क्षणिक है
सदैव नहीं रह पायेगा.
दिल्ली की चौड़ी सड़कों पर
जब फिर से नादिर आएगा.
सत्ता के स्वार्थ में
इतिहास भुला कर बैठे हैं.
तत्क्षण रौशनी के लिए
घर को जला कर बैठे हैं.
वंचक है, खुद ही को ठग रहे
दीवाने हैं, ये सत्ता के मलंग है .
अपनी संतती को निगलने वाले
काले विषधर भुजंग हैं .
दह में उतरकर भीतर
व्याल बांधना होगा.
तोड़ दन्त विषधर के
हथेलियों में फन थामना होगा .
कवि कर्म है मेरा
तुम्हें जगाता रहता हूँ.
आने वाले कल की
तस्वीर दिखाता रहता हूँ.
आँखें बंद कर लेने से
तस्वीर नहीं बदलती है .
दवा कडवी हो कितनी भी
फिर भी निगलनी पड़ती है .
..................नीरज कुमार ‘नीर’
मेरी यह कविता पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित है .
कुछ शब्दार्थ /भावार्थ :
8. व्याल : सर्प
Comment
आपके प्रस्तुत छंद प्रयास के प्रति सादर भाव रखते हुए शुभकामनाएँ कह रहा हूँ,
बधाई
आदरणीय नीरज जी ,बहुत बढ़िया कविता , सादर बधाई
आदरणीय नीरज कुमार 'नीर' जी
सामयिक परिपेक्ष्य में बहुत सशक्त प्रस्तुति..
हार्दिक शुभकामनाएँ
आप सब सुधि जनों का ह्रदय से आभार ..
देश की वर्तमान स्थिति पे सुन्दर रचना , बधाई !!!
सुंदर रचना अभिव्यक्ति, बधाई आदरणीय नीरज जी
दह में उतरकर भीतर
व्याल बांधना होगा.
तोड़ दन्त विषधर के
हथेलियों में फन थामना होगा ...................... बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय नीरज जी ।
कवि कर्म है मेरा
तुम्हें जगाता रहता हूँ.
आने वाले कल की
तस्वीर दिखाता रहता हूँ......................... एकदम सही बात है जब कवियों की लेखनी भी आग उगलेगी तब ही जागृति आएगी ।
आँखें बंद कर लेने से
तस्वीर नहीं बदलती है .
दवा कडवी हो कितनी भी
फिर भी निगलनी पड़ती है........................... बहुत सही , भाव पूर्ण और घाव करें गंभीर । आपको बहुत बधाई । आ० नीरज भाई जी ।
आधुनिक परिस्थिति का सुन्दर वर्णन किया है नीरज भाई हार्दिक बधाई स्वीकारें
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online