सूरज के घोड़े चलते हैं निरंतर,
इस कोने से उस कोने तक ताकि
प्रकाश फैले कोने कोने में.
लेकिन घोड़ों के घर ही में रहता है अँधेरा.
प्रकाश उनसे ही रहता है दूर.
लेकिन उन्हें बोलने की इजाजत नहीं
मांगना उन्हें वर्जित है
घोड़े के मुंह में लगा होता है लगाम
उन्हें रूकने, हांफने और सुस्ताने की भी इजाजत नहीं
उन्हें बस चलते रहना है ताकि सूरज चल सके
निरंतर, निर्बाध.
डर है, रुके तो हिनहिना उठेंगे .
उनके आँखों पर लगी होती है पट्टी
ताकि वे देखें सीधा .
अगल बगल की सुन्दरता , रंग बिरंगी तितलियाँ,
उन्हें यह सब देखने की इजाजत नहीं है.
उनका तो काम है चलना, आगे सीधी राह में.
उन्हें चलना है सीधे , बगैर इधर उधर देखे.
बगैर ज्यादा की इच्छा के ताकि प्रकाश फैला रहे.
डर है कि इधर उधर देखा तो हिनहिना उठेंगे.
उनके मुंह पर लगी है जाबी
उन्हें बोलने की इजाजत नहीं है.
डर है बोला तो हिनहिना उठेंगे ..
घोड़ों के हिनहिनाने से फ़ैल जायेया अँधेरा
उनके घरों में, जो कभी नहीं बने घोड़े.
घोड़े होते हैं विभिन्न रंगों के
श्वेत, श्याम ,
छोटे घोड़े , बड़े घोड़े
दलित, पिछड़े आदिवासी और सवर्ण घोड़े ..
.......................... नीरज कुमार ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत आभार आपका आदरणीय महिमा श्री जी .. आपकी टिप्पणी ने मनोबल बढाया है .
"सूरज के घोड़े ".. कमाल का बिम्ब चुना है आदरणीय ..शुरुआत में एहसास भी नहीं होता की ...अंत में आकर हम ठिठक जायेंगे ..सभ्य समाज का नंगा सच से रूबरू करती प्रस्तुति के लिए ....बधाई बधाई बधाई ...
आप सभी आदरणीय सुधि जनों का ह्रदय से आभार .. आपकी टिप्पणियां मनोबल को बढाने वाली है. आदरणीय प्राची जी , आदरणीय सौरभ पाण्डे जी आ. विजय निकोरे जी एवं आ. आशुतोष मिश्र जी बहुत बहुत आभार आप का
कमाल की रचना है नीरज जी ...क्या बेहतरीन प्रतीक चुना है ....इस रचना पर मेरी और से हार्दिक बधाई सादर
सच्चाई को बयां करती यह रचना
बहुत रसमय और भावपूर्ण है।
ऐसे ही और लिखते रहें।
बधाई, आ० नीरज जी।
आदरणीय नीरज जी बहुत सुंदर भावों को चुन चुन कर पिरोया है आपने , बहुत बधाई आपको ।
आदरणीय नीरज नीर जी, आपकी इस रचना पर आपको बार-बार बधाई.
आपकी इंगितों की ज़द में बिम्बों का छोर आ गया है. कविता समृद्ध हुई है. शुभकामनाएँ
आपसे आदरणीय अपेक्षाएँ बढ़ गयी हैं.
सादर
अंतिम पंक्ति नें एकदम से झकझोर दिया...
क्या कहूँ निःशब्द हूँ इस संवेदनशील अभिव्यक्ति को पढ़ कर
बँधुआ श्रमिकों की विवशताओं को बहुत सही अभिव्यक्ति मिली है..
बहुत बहुत शुभकामनाएँ आ० नीरज जी
बहुत बहुत आभार आप सबका
बहुत बढ़िया लिखा है आपने
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