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नज़्म - सिगरेट सी ज़िन्दगी

उँगलियों के बीच फँसी
सिगरेट की तरह
कब से सुलग रही है ज़िन्दगी
सैकड़ों ख्वाब हैं,
कश-दर-कश, धुआँ बनकर
भीतर पहुँच रहे हैं..
ज्यादातर का तो
दम ही घुटने लगता हैं
और भाग जाते हैं लौटती साँसों के साथ ।
पर कुछेक हैं,
जो छूट गए हैं भीतर ही कहीं
पड़े हुए हैं चिपक कर, टिककर..
इन दिनों एक-एक कर मैं
उन्हीं ख़्वाबों को
मुकम्मल करने में लगा हूँ.

मिलूँगा फिर कभी
कि अभी ज़रा जल्दी में हूँ
मेरी सिगरेट ख़त्म होने को है..


(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by विवेक मिश्र on August 5, 2013 at 6:03am
महिमा जी, जितेन्द्र जी और अरुण जी - रचना अनुमोदन हेतु आप सभी का हार्दिक आभार।
Comment by Abhinav Arun on August 5, 2013 at 5:41am

उँगलियों के बीच फँसी
सिगरेट की तरह
कब से सुलग रही है ज़िन्दगी
सैकड़ों ख्वाब हैं,
कश-दर-कश, धुआँ बनकर
भीतर पहुँच रहे हैं..

सुन्दर सामंजस्य बैठाया है आदरणीय वाह सशक्त कथन की रचना के लिए साधुवाद !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 5, 2013 at 12:32am

सिगरेट और जिंदगी , बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुति, आदरणीय विवेक जी, बधाई आपको

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 2:12pm

क्या कहने है .. शानदार प्रस्तुति ... बधाई आपको

Comment by विवेक मिश्र on August 3, 2013 at 11:29pm
राणा भाई - ओबीओ का मेयार इस क़दर ऊँचा हो गया है कि कुछ भी पोस्ट करने से पहले कम से कम दस दफ़े सोचना पड़ता है। यह नज़्म भी मैंने डरते-डरते ही पोस्ट की थी। आपकी पसंदगी की मुहर लगी, तो दिल को सुकून मिला। :-)

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 3, 2013 at 10:56pm

विवेक भाई बेहतरीन ....सिगरेट और ज़िन्दगी, धुवां और खाब ..क्या रूपक लिया है....कमाल है|दाद कबूलिये|

कृपया ध्यान दे...

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