For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ

दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -
मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -

मैं लम्हा हूँ, मगर सदियों पुरानी
किसी तारीख़ का हिस्सा रहा हूँ -

हजारों मस'अले हैं ज़िन्दगी में
मैं इक इक कर उन्हें सुलझा रहा हूँ-

ग़मे दौरां में ख़ुशियाँ ढूँढ़ना सीख
तुझे कबसे ऐ दिल! समझा रहा हूँ -

नहीं मुमकिन है मेरी वापसी अब
फ़क़त शतरंज का प्यादा रहा हूँ -

तुम्हारे नाम का इक फूल हर साल
क़िताबे दिल में, मैं रखता रहा हूँ -

किनारे इक नदी के बैठकर मैं
'तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ' -

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 12:18am

देर आये मग़र क्या आये.. !  वाह !!  अब तेरे शेरों से दिल बहला रहा हूँ ..!!!

एक बात अवश्य कहूँगा, विवेक भाई,  इतना इत्मिनान से नहीं पिलाते.. कि प्यास को ही ऊब हो जाये. प्रस्तुतियों की आवृत्ति को तनिक बढ़ा दें, तो यह हमारी प्रतीक्षा से सिंक्रोनाइज हो जायेगी.

शुभ-शुभ

Comment by विवेक मिश्र on August 16, 2013 at 3:11pm
नवाजिश के लिए शुक्रिया केतन भाई।
Comment by Ketan Parmar on August 16, 2013 at 1:16pm

दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -
मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -

uMDAA MATLA BADE BHAI

Comment by विवेक मिश्र on August 15, 2013 at 9:00pm
वीनस भाई - शुक्रिया साहब। हाँ, आप सच कहते हैं। मैं उतना frequent राइटर नहीं। कभी-कभी जब लिखे बिना एकदम नहीं रहा जाता, तब कलम उठाता हूँ। :-)
Comment by वीनस केसरी on August 15, 2013 at 3:24am

विवे़क भाई इतना कम लिखते हैं कि जब लिखते हैं आकलन करना मुश्किल होता है कि ये पिछली से अच्छी रचना है या बहुत अच्छी रचना है .. :)))))))))

बहरहाल मुझे लगता है ये पिछली से टक्कर लेने लायक है ....

Comment by विवेक मिश्र on August 14, 2013 at 11:57am
शुक्रिया केतन जी।
Comment by Ketan Parmar on August 14, 2013 at 11:37am

Bahoot khub

Comment by विवेक मिश्र on August 14, 2013 at 11:29am
वन्दना जी एवं वसुन्धरा पाण्डेय जी - हार्दिक आभारी हूँ।
Comment by Vasundhara pandey on August 14, 2013 at 8:55am

बहुत सुन्दर गजल ..बधाई आपको !!

Comment by vandana on August 14, 2013 at 7:32am

दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -
मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -

हजारों मस'अले हैं ज़िन्दगी में
मैं इक इक कर उन्हें सुलझा रहा हूँ-

बढ़िया गज़ल 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service