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मेरे दादाजी को श्रद्धांजली स्वरूप कुछ पंक्तियाँ  

पिता! 

तुम छत थे

ढह गये
तीव्र उम्र तूफान से
दरक गयीं दीवारें
लगाव ख़त्म
आपसदारी 'थी'
'है' नही
न कोई बचाव
धूप से
या बारिश से
शीत से
या गैरों से
न रहा घर
रह गया ढेर
ईंटों का
तुम थे 'एक छत'
हम 'चार दीवारें'
मिटा दिया हमने
अहसास
तुम्हारे होने का
तुम गये, शेष
एक प्रश्न
अवशेष
क्या दीवार के साये में
सुकून होगा
छत के साये सा ?
               - गीतिका 'वेदिका'

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 687

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 9:00pm

आदरणीया गीतिका जी, बहुत ही सुंदर भाव//हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 26, 2013 at 8:28pm

प्रिय  गीतिका मैं आपकी मनोस्थिति समझ सकती हूँ पिछले साल ही इस दौर से गुजरी हूँ पिता हो या माता  वो हमारे सरों की छत ही होते हैं छत के बिना सुकून कहाँ ?? अपने व्यथित हृदय से निकले शब्दों भावों में पिरोई रचना अप्रतिम श्रद्धांजली है आपके पिता के लिए वो पास ना होते हुए भी ये सब देख पढ़ रहे होंगे शुभ कामनाएं बस इससे अधिक कुछ नहीं लिख पाऊँगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 26, 2013 at 8:23pm

आदरणीया मीना पाठक जी ये रचना गीतिका जी की है आपने गलती वश नाम गलत लिख दिया 

Comment by Meena Pathak on July 26, 2013 at 7:51pm

आदरणीया कुंती जी आप की रचना कई बार पढ़ी फिर भी कुछ लिख नही पा रही हूँ .. आँखे नम हों गई, बधाई 
सादर 

Comment by annapurna bajpai on July 26, 2013 at 12:18pm

आदरणीया गीतिका जी बड़ी सुंदरता से पिरोये गए भावों से पिता को श्र्द्धा सुमन देती  आपकी रचना के लिए आपको बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 26, 2013 at 11:54am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.....................
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 26, 2013 at 10:02am

आदरणीया गीतिका जी,

 बच्चो के सिर पर ,पितारूपी छत के होते, न होने की बहुत ही सहजता से अनुभूति की अभिव्यक्ति है, आपकी रचना में..!

//क्या दीवार के साये में 
सुकून होगा 
छत के साये सा ?//

बिल्कुल सच पूछा आपने ,जो छत के तले सुकून व् निश्चिन्ता होती है , वो दीवारों के सहारे नही है ! अपितु दीवारों के तो साये, ही नही होते! और बिना छत के तो दीवारे अलग अलग होती है, छत ही उनको जोड़कर व् सुरक्षित रखती है ,  नही तो दीवारे ढह जाती हैं!

भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 26, 2013 at 9:38am

अपने को खो देने पर ख़ास कर पिता जिसका साया संबल प्रदान करता रहता है, कुछ दिन तक मन में प्रश्न उठते रहते है 

ऐसी ही अन्बुती करते सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई गीतिका "वेदिका" जी 

Comment by MAHIMA SHREE on July 25, 2013 at 11:36pm

आदरणीया गीतिका जी .. बहुत ही सुंदर भाव अभिव्यक्ति .. बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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