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शाश्वत प्रेम (कुंडलिया छंद)

1-
शाश्वत प्रेम सदैव है, सृष्टि आदि अनुमन्य।
यह ईश्वर का अंग है, करके सब हों धन्य॥
करके सब हो धन्य, जगत का सार यही है।
वश में होते ईश, प्रेम का काट नहीं है॥
कबिरा मीरा सूर, शशी आदिक इसमें रत।
नहीं वासना युक्त, प्रेम तो सत्व शाश्वत॥

2-
बहती गंगा प्रेम यह, बांध सका नहिं कोय।
अन्हवाये तन प्रेम में, हर मन निर्मल होय॥
हर मन निर्मल होय, कलुष अंतर का मिटता।
नहीं वासना युक्त, प्रेम वश ईश्वर मिलता॥
निकल अचल हिमवान, सिन्धु चंचल में मिलती।
गंगा प्रेम प्रतीक, निरंतर कलकल बहती॥

मौलिक व अप्रकाशित
(संशोधित)

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Comment by Vasundhara pandey on August 7, 2013 at 2:50pm

सुन्दर ,बहुत सुन्दर...बधाई आपको..!!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:38pm
आदरणीय आशुतोष मिश्रा सर जी! रचना की सराहना के लिये हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:34pm
आदरणीय केतन जी रचना सराहना के लिये हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:33pm
आदरणीयl प्राची दीदी! आपने अनुज की रचना पर अपना महत्वपूर्ण व बहुमूल्य समय दिया अनुज कृतकृत्य है।
प्रवाह सम्बंधी कमी शब्द- संयोजन की अकुशलता है। दूर करने का प्रयास करता हूँ। सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:30pm
आदरणीया अन्नपूर्णा जी व शशि पुरवार जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:28pm
आदरणीय सौरभ सर जी! सादर नमन
आपने रचना को सराहा, निखारा इसके लिये मैं आपका हृदय से आभारी हूँ। आपने अत्यंत महीन किन्तु महत्वपूर्ण दोष दिखा कर मेरे ज्ञान में अभिवृद्धि किया है, इसके लिये मैं आपको भूरिश: विनत प्रणाम निवेदन करता हूं। आपके आशीष से मुझे आत्मबल मिला है। दोषों को अभी दूर करता हूँ।
सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:22pm
आदरणीय भाई पीयुष जी!रचना की कमी की तरफ ध्यानाकर्षण व इसकी प्रशंसा के लिये आपका हृदय से आभार।
कमी को अभी दूर करता हूँ।
सादर।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:18pm
आदरणीय जवाहर लाल जी! आदरणीया सरिता भाटिया जी! भाई अमन कुमार जी और आदरणीय श्याम नारायन वर्मा जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:15pm
आदरणीय गुरुजनवृंद! सादर नमन
सर्वप्रथम आप सबके स्नेहाशीष पर विलम्ब से आने के लिये क्षमाप्रार्थना। ऐसा स्वास्थ्य कारणों के चलते हुआ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2013 at 6:22am

शास्वत प्रेम ही मनुज मात्र को इश्वर तक जाने का एक मात्र रास्ता है ..शास्वत प्रेम की महिमा का बखूबी चित्रण किया है आपने अपनी रचना के माध्यम से ..ढेर सारी बधाई स्वीकारें..सादर 

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