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पर उनको ख़त लिख नहीं पाया

याद किया और कलम उठाया,
पर उनको ख़त लिख नहीं पाया.
प्यार लिखूं -दिलदार लिखूं या,
दिल की धड़कन- समझ न पाया.
सोने की कोशिश में थककर,
रात को वो भी जगते होंगे.
उनके तसव्वुर में भी शायद,
कितने सपने सजते होंगे.
मिलना तो कई बार हुआ,
पर क्यों मिलता हूँ कह नहीं पाया.
याद किया और कलम उठाया,
पर उनको ख़त लिख नहीं पाया.

जब भी उनसे मिलता हूँ तो,
जानें क्या हो जाता है.
दिल कीबातें कह नहीं पाता,
क्यों यह लब सी जाता है?
सामने से कई बार वो गुजरे,
हाथ उठाकर रोक न पाया.
याद किया और कलम उठाया,
पर उनको ख़त लिख नहीं पाया.
हम भी कुछ ना कह पाते हैं,
वो भी कुछ ना फरमाते हैं.
मेरी तरह कहने में जुबाँ से,
शायद वो भी शरमाते हैं .

दिल में वही हैं फिर भी मैं,
हनुमान सा सीना चीर न पाया.
याद किया और कलम उठाया,
पर उनको ख़त लिख नहीं पाया.

गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल-9334414611

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Comment by satish mapatpuri on December 29, 2010 at 5:03pm
बागीजी. गुरूजी आप दोनों को धन्यवाद.   
Comment by Rash Bihari Ravi on December 23, 2010 at 6:24pm
khabsurat lajabab

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 19, 2010 at 12:26pm

वाह सतीश भईया, श्रींगार रस से सजी यह रचना बहुत ही मनमोहक है... बधाई आपको ...

कृपया ध्यान दे...

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