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!!! शोर है सागर में तूफां !!!

छोटी बह्र में गजल-2122, 2122

तुम मुझे अच्छी लगी हो।
मन से तुम सच्ची लगी हो।।

रोज गुल की कामना सी,
शहर की बच्ची लगी हो।

शाम की मुश्किल घड़ी में,
जीत की बस्ती लगी हो।

हुस्न की मलिका सुनो तुम,
आज फिर हस्ती लगी हो।

बाग के हर बज्म में तुम,
राग सी मस्ती लगी हो।

शोर है सागर में तूफां,
मौज की कश्ती लगी हो।

चढ़ गया छत पर पकड़ कर,
सांप सी रस्सी लगी हो।

तुम सदा छत को सॅभाले,
रीढ़ सी धन्नी लगी हो।

फिर कभी ‘सत्यम’ मिले जो
मीत के जैसी लगी हो।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:36am

ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2013 at 6:28am

इस ग़ज़ल के लिए मैं भी कहूँगा ये मुझे अच्छी लगी है ..इस ग़ज़ल के लिए सत्यम जी आपको हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 3:43pm

शोर है सागर में तूफां,
मौज की कश्ती लगी हो।

चढ़ गया छत पर पकड़ कर,
सांप सी रस्सी लगी हो।//////वाह क्या बात है भाई केवल जी ///हार्दिक बधाई //सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 10:02am

प्रयास आश्वस्त करता है. इस ग़ज़ल की संप्रेषणीयता बहुत बेहतर है, केवल भाई जी.

शुभम्


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 23, 2013 at 11:26pm

प्यारी सी गज़ल के लिये बधाई..........

Comment by shashi purwar on July 23, 2013 at 10:48pm

waah bahut khoob badhai aapko

Comment by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:15pm

बहुत ख़ूब !! बधाई इस ग़ज़ल के लिए !!

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 6:19pm

अति सुंदर गजल आ० केवल भाई जी ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 23, 2013 at 11:07am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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