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!!! हाथ नर मलता गया है !!!

बह्र-----2122  2122

भोर जो महका गया है।
सांझ को उकसा गया है।।

रास्ते का ढीठ पत्थर,
पैर से टकरा गया है।

चोट लगती दर्द होता,
आह पहचाना गया है।

ऐ खुदा अब तो बता दे!
राह क्यों रोका गया है?

जान कर अति दर्द उसका,
आंख जल ढरका गया है।

हाय ये तकदीर खेला,
खेल कर घबरा गया है।

कल यहां यमराज देखो,
काल को धमका गया है।

रात रोती शब हंसे यूं,
मौत बस सहमा गया है।

ऐ मेरे बन्दे समझ ले,
काम मुश्किल आ गया है।

तुम अहम् अब मत गिनाओ,
हाथ नर मलता गया है।

आज फिर ‘सत्यम’ जुबां से,
बात को समझा गया है।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 12, 2013 at 10:02am

आ0 सौरभ सर जी, सादर प्रणाम!  जी सर, मनातिरेक पर सहजता पाना अतिकठिन है। किन्तु यह समझना भी अतिमहत्वपूर्ण ही है कि सफलता के लिए सहजता लाना अनिवार्य है।  सर जी,  आपके निर्देश सदा ही कुछ बेहतर करने को प्रेरित करते हैं  और मैं सद प्रयासरत हूं।  आपके स्नेह और शुभाशीष हेतु आपका हृदयतल से आभार। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 9:51pm

आपकी गज़ल के बह्र छोटी है ग़र मेयार वाह वाह ! लेकिन आप इतनी ज़ल्दी में क्यों होते हैं भाई.. . ?

शुभेच्छाएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 8, 2013 at 10:16pm

आ0 अरून निगम सर जी,  सादर प्रणाम!   सर जी आपके स्नेह और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूं।  सर जी,  आपका आशीष पाकर मुझमें एक नई स्फूर्ति आ जाती है। आपका एक बार पुनः शुक्रिया व तहेदिल से आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 8, 2013 at 10:05pm

आ0 राणा सर जी,  सादर प्रणाम!   सर जी आपके स्नेह और गजल के मूलभूत सुझावों के लिए हृदय से आभार प्रकट करता हूं।  आपने दुरूस्त ही फरमाया है।  मैं अवश्य ही इसे सही करूगां। आपका एक बार पुनः शुक्रिया व तहेदिल से आभार।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2013 at 11:05pm

प्रिय केवक प्रसाद जी, छोटी बहर की प्यारी-सी गज़ल के लिये बधाइयाँ...

आदरणीय राणा जी की सलाह पर गौर कीजियेगा. किसी भी रचना में व्याकरण-दोष सचमुच ही खटकता है....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 6, 2013 at 9:23pm

आदरणीय केवल जी ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास है ..यह शेर अच्छा हुआ है 

रास्ते का ढीठ पत्थर,
पैर से टकरा गया है।

और इन मिसरों में व्याकरण की त्रुटियाँ हैं ,,,,,फिर से देख लें

भोर जो महका गया है।

आह पहचाना गया है।

राह क्यों रोका गया है?

आंख जल ढरका गया है।

हाय ये तकदीर खेला,
खेल कर घबरा गया है।

मौत बस सहमा गया है।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 6, 2013 at 7:16pm

आ0 श्याम नारायण सर जी, आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 6, 2013 at 7:15pm

आ0 मीना पाठक जी, आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 6, 2013 at 7:14pm

आ0 विजय सर जी, आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 6, 2013 at 7:13pm

आ0 जितेन्द्र भाई जी, आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।  सादर,

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