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!!! दुर्मिल सवैया !!!   ......8 सगण

बदरा बरसे हरषे धरती, नदिया-सर-खेत भरे जल से।

वन-बाग झकोर हवा पहिरे, फल जामुन-आम पके जल से।।

हर ओर घटा घन घोर घिरी, मन-मोर-चकोर कहे जल से।
विरही मन नारि छली मचली, नहि प्यास बुझे बरखा जल से।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 19, 2013 at 9:50am

आ0 अरून अनन्त भाई जी, आपके स्नेह और अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 19, 2013 at 9:49am

आ0 सौरभ सर जी, आपके अपार स्नेह और अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 19, 2013 at 9:48am

आ0 राजकुमारी जी, आपके स्नेह और अनुमोदन हेतु आपका हादिर्क आभार।  सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 18, 2013 at 11:37am

आदरणीय केवल भाई जी बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ है आनंद आ गया भाई बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 12:47am

सुन्दर छंद-रचना

प्रयासरत रहें..

बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 17, 2013 at 8:40pm

वाह बरसात ऋतु का कितना सुन्दर द्रश्य खींचा है इस छंद में बहुत सुन्दर बधाई आपको 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 7:04pm

आ0 लड़ीवाला सर जी,  आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 7:03pm

आ0 संदीप भाई जी,  आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 17, 2013 at 5:53pm

मन भावन दुर्मिल सवैया पढ़ कर प्रसन्नता हुई श्री केवल प्रसाद जी, बधाई स्वीकारे 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 17, 2013 at 9:01am
bahut sundar aadarneey .......maja aa gaya ......badhai sweekaren

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