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बिन माटी सब शून्य

धरती तो आधार है, जा न सके उस पार

जन्म,मरण अरु परण का,धरती ही आधार|

 

पञ्च तत्व से जन्म ले,पाय धरा की गोद 

हरेभरे उपवन खिले, प्राणी करे प्रमोद |

 

धरती गगन जहां मिले,लगे नीर की झील

हिरन दौड़ते खोजने, निकले मीलो मील |

 

हीरे मोती कुछ नहीं, जितनी धरा अमूल्य,

सभी मिले भूगर्भ में, बिन माटी सब शून्य|

 

निर्धन या धनवान हो, दो गज मिले जमीन,

साँसों की डोरी थमे, जाय  संपदा  हीन |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2013 at 7:31pm

सादर आभार आपका श्री जितेन्द्र "जीत" जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 7:17pm

"आदरणीय..लक्ष्मण जी, सुंदर दोहे प्रस्तुति पर..हार्दिक बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2013 at 7:03pm

बिलकुल सही कहा आपने श्री विजय मिश्र जी, जीवन का सत्य यही है | रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार -

शास्वत जीवन सार ये, इसका रखना ध्यान

भारत माँ की गोद में,  निकले अपने प्राण 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2013 at 6:52pm

दोहे पर आपकी पुष्टि से प्रसन्नता हुई आदरणीय राज नवादवी साहब 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2013 at 6:50pm

दोहे सुन्दर बताकर सराहने हेतु आपका आभार भाई श्री ब्रजेश नीरज जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 18, 2013 at 6:48pm

दोहों के मर्म तक पहुँच सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुखर्जी 

Comment by विजय मिश्र on July 18, 2013 at 2:29pm
जीवन -सत्य का सुंदर समारूप , बधाई लक्ष्मणजी
Comment by राज़ नवादवी on July 18, 2013 at 1:16pm

निर्धन या धनवान हो, दो गज मिले जमीन,

साँसों की डोरी थमे, जाय  संपदा  हीन |

जीवन की पराकाष्ठा! बहुत खूब लक्ष्मण जी! 

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:09pm

आदरणीय आपको हार्दिक बधाई इस सुन्दर दोहावली पर!

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 12:31pm

लक्ष्मण जी आपने तो जीवन का पूरा सार कह दिया.

सादर

कुंती

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