For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संबंध
बेमतलब , बेमानी ...
भाई चारे की तरह
ढोते हैं रिश्तों की लाश को
आफ्नो को
अपने ही देते कंधे
चलते जाते हैं
नाकों मे फैलती
अपनों की सड़ांध
आसान नहीं है चलना
और फिर
जला आते है अपनों की लाश को
अपने ही , मगर
ढ़ोना तो पड़ता है
छाँव की तलाश मे
रिश्तों की आस मे
संबंध
बेमानी , बेमतलब
भाई चारे की तरह ...

"मालिक व अप्रकाशित"

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 14, 2013 at 9:31pm

आभार आदरणीय अरुण शर्मा अनंत जी, सौरभ पांडे जी, बृजेश जी, केवल प्रसाद जी, विजय निकोरे जी, लक्ष्मण जी, राम शिरमोनि पाठक जी, सुमित जी, माथुर जी एवं आदरनिया प्राची जी .... आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ... उत्साहवर्धन  के लिए.... 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 13, 2013 at 1:54pm

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2013 at 11:59pm

सम्बन्ध कोई हो, कभी रक्त की अवधारणा को नहीं जीते. जबकि इस आयाम को एक समय से प्रतिस्थापित किये जाने का प्रयास चलता रहा है. कोई सम्बन्ध चाहे रक्त-सम्बन्ध क्यों न हो, सदा ही पारस्परिक मतैक्य एवं समान या सम-आवृति की वैचारिकता से संपुष्ट होता है. 

आपके विचारों को मैं सहर्ष स्वीकार करता हूँ. आमोद भाई.

रचना हेतु शुभकामनाएँ.

Comment by बृजेश नीरज on July 12, 2013 at 10:53pm

आपके इस प्रयास पर आपको बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 10:32pm

आ0 आमोद भाई जी,  सम्बंधों का स्नेह और अपनों का दर्द-.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by vijay nikore on July 12, 2013 at 5:00pm

यथार्थ की सुन्दर अभिव्यक्ति, आदरणीय।

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 12, 2013 at 1:53pm

संबंध बेमतलब , बेमानी ... 
भाई चारे की तरह 
ढोते हैं रिश्तों की लाश को 
आफ्नो को अपने ही देते कंधे 
चलते जाते हैं 
नाकों मे फैलती अपनों की सड़ांध 
आसान नहीं है चलना ----------सही भाव अभिव्यक्त हुए है श्री आमोद जी, बधाई |पर यह भी उतना ही सत्य है कि----

भाई चारा होता है -

खुनी रिश्ता 

यही रिश्ता काम आता है 

संकट में, क्योकि

तब खून बोलता है,

और यही कंधा भी ढोता है 

आसान भी नहीं है 

इसे यूँ ही छिटकना |---लक्ष्मण 

Comment by ram shiromani pathak on July 12, 2013 at 11:16am

बहुत सुन्दर आदरणीय  //सादर 

Comment by Sumit Naithani on July 12, 2013 at 9:40am

सुन्दर... बधाई स्वीकारें...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 12, 2013 at 9:15am

संवेदनहीनता अनमनस्कता किस तरह जीते जागते श्वाँस  लेते रिश्तों को ज़िंदा लाश बना देती  है और उन्हें फिर सहेजना ढोने सा ही होने लगे , रिश्तों में आते इन कटु  भावों को सहजता से अभिव्यक्त किया है आ०  आमोद श्रीवास्तव जी

हार्दिक शुभकामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service